'From garbage to garden' कितना अच्छा होता न की हम कचड़े को साफ कर एक सुंदर बगिया का निर्माण करते

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From garbage to garden
From garbage to garden' कितना अच्छा होता न की हम  कचड़े को साफ कर एक सुंदर बगिया का निर्माण करते, और शायद उससे भी सुंदर होता की हम कचड़े से ही बगिया का निर्माण करते। 


आज हम भारतीय कचड़ा उत्पन्न करने की मशीन बन गए है। हम एक बिगडैल बच्चे की भाँति व्यवहार कर रहे है, किसी भी वस्तु का एक बार उपयोग करने के बाद हम दुबारा उपयोग ही नही करना चाहते है। कितना अच्छा होता न की दुनिया में कचड़ा शब्द ही नही रहता या यूँ कहे तो कचड़े को संपत्ति का नाम दे दिया जाता, तब शायद लोग सड़क पर केले के छिलके को यूँ ही न फेंक कर अपनी संपत्ति समझकर उसे साथ ले जाते। आज देश में न जाने किस किस मुद्दों पर बहस होती रहती है, पर हमारे स्वास्थ्य के लिये हानिकारक कचड़े के प्रबंधन को लेकर कोई एक शब्द नही बोलना चाहता। लोगों के पास वंदे मातरम् पर बहस करने के लिए ढेरों समय है पर गंदे मातरम को लेकर वो शब्दहीन हो जाते है। छतोंं से कचड़े फेंकने पर लोग गौरवान्वित महसूस करते है तथा से अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते है जिससे कलह और कचड़े के प्रबंधन दोनों मे कठिनाइयाँ होती है। आज दिल्ली जैसे महानगरों का ये हाल है की कुछ जगहों पर कचड़े की ऊँचाई इतनी बढ़ गयी है की airlines authority को इसके खिलाफ़ शिकायत करनी पड़ रही है। हमारे कचड़े के प्रबंधन न करने के कारण आज पानी, हवा,मिट्टी सब जहरीले हो रहे है। वन्य जीव जंतुओ से लेकर समुद्र में रहने वाले जीवों के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे है। यहाँ तक की हमारे स्वास्थ्य पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है। प्रबंधन के नाम पर सरकार शहर के कचड़े को गांव मे जाकर फेंक आते है जिसके दुर्गंध से गांव वालो के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है,हमे खुल के इसका विरोध करना चाहिये और सरकार को इसके निपटारे को विवश करना चाहिये।पर सरकार को सुधारने से पहले हमें खुद भी गंदे आदतों में सुधार लाना ही होगा। हम गीली और सूखी कचड़ो को अलग अलग करके रख सकते है जिससे हम गीली कचड़ो ( जैविक कचड़ा) को जानवरो को खिलाकर या फिर अपने बगीचों में खाद के रूप में उपयोग कर सकते है। सूखे कचड़े में अगर वैसी वस्तुएँ है जिनका उपयोग हम पुनः कर सकते है तो उसे उपयोग में लाना चाहिये।


 बहुत सारे NGOs जो मुफ्त में कचड़े लेकर उसका प्रबंधन कर हमारे उपयोग की वस्तुओं का निर्माण करते है, की हमें मदद करनी चाहिये।आज बहुत सारें यूनिवर्सिटी के छात्रों ने इनके निपटारें की बहुत सस्ती तरीकों को इजाद किया है हमे उन सस्ती तकनीको के उपयोग के तरफ भी ध्यान देना चाहिए। तब जाकर हम अपने जल, जंगल और जमीन की रक्षा कर सकेंगे। और विदेशो में जो हमारे देश की एक अस्वच्छ राष्ट्र के रूप में जो छवि है उसे मिटाकर हम विदेशी पर्यटकों को भी आकर्षित कर सकेंगे।

               ©✍️     शिवेश उपाध्याय
                           कला संकाय
                        बी.ए द्वितीय वर्ष 
                    काशी हिंदू विश्वविद्यालय

(BHU छात्रों,शिक्षकों, हॉस्टलों, डेलिगेसी के पन्ने
जहाँ होगी कुछ खट्टी-मीठी यादों के डायरी पन्ने)

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