ख्वाहिश , जरूरत और प्यार :- प्रिति रावत

ख्वाहिश , जरूरत और प्यार

तुम न मेरे ख्वाहिश हो न जरूरत हो । तुम हो मेरा प्यार । न मैंने ख्वाहिश सा चाहा तुम्हें न कभी जरूरत समझा । तुम्हें बस प्यार समझा और प्यार जैसे प्यार किया और करती रहूँगी । जब भी तुम्हें देखती हूँ तो लगता है ख्वाहिश , ज़रूरत , प्यार सब एक रूप लिए मेरे सामने खड़ा हो ।

मैं मानती हूँ कि बढ़ते वक़्त के साथ तुम मेरी जरूरत बनते जा रहे हो पर इसका ये मतलब नहीं कि तुम्हें नज़र भर देखने की ख्वाहिश नहीं या तुम्हारे साथ हसीन लम्हें गुजारने की ख्वाहिश नहीं रही ।

तुम रहो मेरे पास यहि ख्वाहिश है और यही जरूरत भी । तुम्हारा होना हर जरूरत को पूरा करता है और तुम्हारे सिवा कोई ख्वाहिश भी नहीं । 

सब कुछ तुम पर आकर इसलिए भी रुक जाता है क्योंकि कभी चाहा नहीं तुम्हे ख्वाहिशों या जरूरतों जैसे जो बदलती हैं वक्त के साथ । मैंने बस तुम्हे प्यार किया बस प्यार । 

अगर खुदा से कुछ माँगना हुआ कभी तो मैं माँगती हूँ तुमको हर जनम के  लिए , ऐसे ही जैसे तुम आज हो । ख्वाहिशों और जरूरतों से ऊपर मेरा प्यार बनकर । बन जाना तुम मेरी ख्वाहिश , जरूरत सब कुछ ...... और तुम्हारा सब कुछ होना लाज़मी भी है .... मेरा प्यार जो हो ।

प्रिति रावत

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