रात में बीएचयू के साइबर लाइब्रेरी में पढ़ने जाने वाली लड़कियां



रात में बीएचयू के साइबर लाइब्रेरी में पढ़ने जाने वाली लड़कियां 

बीएचयू दिन में जितना हरा-भरा,चमकता-दमकता और चहल पहल से भरा दिखता है ,रात में उतना ही वीरान, सुनसान और डरावना हो जाता है। हालाकि बीएचयू हमेशा से ऐसा नहीं था।
आज से दसेक साल पहले के सीनियर बात बात में ही बताते है कि "बीएचयू आज नियन पहिले ना रहे, पहिले रात में भी क्लास चले" अर्थात बीएचयू आज जैसे है पहले वैसा नही था, पहले रात में भी क्लासेज चलती थी। लोग आराम से बिना किसी भय के क्लास आया जाया करते थे। हालाकि ये बंद कब और क्यों हुआ नही पता।

समय के साथ बीएचयू की भी हवा बदली। बीएचयू में लालजी सिंह कुलपति हुए और सयाजी राव गायकवाड सेंट्रल लाइब्रेरी के बगल में साइबर लाइब्रेरी खुली। तकनीकी से भरपूर लाइब्रेरी। जहां पहली बार बीएचयू के आम स्टूडेंट्स कंप्यूटर से रूबरू हुए। लाइब्रेरी 24×7 खुलने लगी। सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन एक दिन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति के पद पर गिरीश चंद्र त्रिपाठी नियुक्त हो कर आ गए और एक एक करके बारी बारी से बीएचयू के प्रोग्रेसिव परपम्पराओ पर कुल्हाड़ी चलाना शुरू किया और सबसे पहले बीएचयू की 24 घंटे खुलने वाली लाइब्रेरी को बंद करवा दिया। गिरीश चंद्र त्रिपाठी कहते थे की "रात में साइबर लाइब्रेरी में स्टूडेंट्स p*rn देखते है और संसाधनों का मिसयूज करते है, जिनको पढ़ना होता है वो दिन में भी और रूम में ही पढ़ लेते है,उनके लिए रात में लाइब्रेरी खोलने की जरूरत नही"


बीएचयू में इसका भयंकर विरोध हुआ और छात्रों का एक समूह ने वापस 24×7 लाइब्रेरी खोलवाने के लिए 10 दिन तक आमरण अनशन किया। त्रिपाठी जी ने आंदोलनरत स्टूडेंट्स को विश्वविद्यालय से निष्कासित करवा दिया। लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक चली । सुप्रीम कोर्ट ने निष्कासन रद्द करके बीएचयू कुलपति त्रिपाठी जी को कड़ी फटकार लगाई और बुरी तरह लताड़ा।

फिलहाल सुधीर कुमार जैन (वर्तमान कुलपति) ने कुलपति का पदभार ग्रहण करते ही सुधार के कार्यों में सबसे पहले साइबर लाइब्रेरी को 24×7 खोलने का आदेश दिया। विश्वविद्यालय के स्टूडेंट्स खुश तो हुए लेकिन महिला स्टूडेंट्स को निराशा ही हाथ लगी क्योंकि महिला हॉस्टल का गेट रात 10 बजे ही बंद हो जाता है। फिर महिला स्टूडेंट्स कैसे लाइब्रेरी जा सकती थी?

एक तरीके से कुलपति सुधीर कुमार जैन का यह फैसला पितृसत्ता सोच से ग्रषित साबित हुआ। महिला स्टूडेंट्स हाथ मलती रह गई। जब कुलपति से सवाल पूछा गया की जब लाइब्रेरी 24 घंटे खुल रही है तो केवल मेल स्टूडेंट्स के लिए ही क्यों? महिला स्टूडेंट्स के साथ ये भेदभाव क्यों?

कुलपति सुरक्षा कारणों का हवाला देते रहे और साइबर लाइब्रेरी के substitute के रूप में महिला हॉस्टल में ही कंप्यूटर सिस्टम लगवाने की बात करते दिखे। और जब इसपर कोई कड़ा होकर कुलपति से सवाल किया तो मुंह चुराते दिखे।

हालाकि वो लड़किया जो बाहर रूम लेकर रहती है और जिनके रूम मालिक थोड़े लिबरल या लापरवाह है। जो रोज रात को अटेंडेंस नही लेते , उन PG की लड़किया साइबर लाइब्रेरी का लाभ लेती है लेकिन इनकी संख्या Male Student के अपेक्षा नगण्य होती है। 


ऐसे में ये फीमेल स्टूडेंट्स अपनी सुरक्षा को भी लेकर चिंतित दिखाई पड़ती है लेकिन फिर भी साहस दिखाते हुए साइबर लाइब्रेरी रात में पढ़ने आती है। लेकिन उनके समस्या यह होती है की रात में वो अपने रूम या हॉस्टल नही जा सकती । पहला कारण तो यह होता है की उनके रूम या हॉस्टल का गेट देर रात में नही खुल सकता है और दूसरा कारण है कैंपस की असुरक्षित सड़के। मतलब यह है की एक बार अगर कोई महिला स्टूडेंट रात में साइबर लाइब्रेरी पढ़ने आ गई तो फिर उसको सुबह होने तक यही लाइब्रेरी में ही रहना होता है। चाहे नींद आए या कुछ भी।

विश्वविद्यालय प्रशासन ऐसे महिला स्टूडेंट्स के लिए रात में लाइब्रेरी से हॉस्टल या फिर उनके अपने PG तक सुरक्षित आने जाने के लिए कोई बस सुविधा मुहैया नहीं कराता है।
ऐसे में रात में साइबर लाइब्रेरी पढ़ने आनी वाली महिला स्टूडेंट्स अपने ही भरोसा आती है।

कुलपति सुधीर कुमार जैन ने हॉस्टल की महिला स्टूडेंट्स से जो साइबर लाइब्रेरी के सबस्टीट्यूट के रूप में हरेक हॉस्टल में कंप्यूटर सिस्टम लगवाने का वादा किया था वो आज तक धरातल पर कितना लागू हो पाया उसको स्वयं कुलपति महोदय भी नही जानते। रात में साइबर लाइब्रेरी पढ़ने आने वाली लड़कियां आम लड़किया नही है। ये फौलादी इरादों वाली लड़कियां है जो एक न एक दिन देश,दुनिया,समाज,समय और इतिहास को बदलेंगी। निश्चित ही बदलेंगी।


© ✍️ लेखक वर्तमान में BHU के कृषि विज्ञान संस्थान में स्नातक अंतिम वर्ष के छात्र हैं।

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