आखिर क्यों बीएचयू में दोपहिया वाहनों पर तीन सवारी बैठना वर्जित,लेकिन खुले में पेसाब करना नही? RGSC और एफिलिएटेड कॉलेजों के साथ सौतेला व्यवहार


आखिर क्यों बीएचयू में दोपहिया वाहनों पर तीन सवारी बैठना वर्जित,लेकिन खुले में पेसाब करना नही?

RGSC और एफिलिएटेड कॉलेजों के साथ दोहरा के साथ सौतेला व्यवहार 

देश के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयो में एक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय जहां पर पढ़ना हरेक छात्र का सपना होता है।
कहते है जब छात्र बीएचयू गेट से महामना के प्रतिमा के सामने से शीश नवाकर अंदर दाखिल होता है, उसको पहली बार एहसाह होता है कि उसकी दुनिया बदल गई। बीएचयू की हरियाली , दोरंगी इमारते, चौड़ी साफ सुथरी सड़कें ,कंधे पर सपनो का बस्ता टांगे नौजवान युवक और युवतियां.. ये सब एक अलग ही दुनिया दिखा देते है।निराशा तब होती है जब पता चलता है कि जहां पढ़ के सपना पूरा करने का ख्वाब देखा करते थे वो अब अंदर से खोखला हो चुका है।
इस विश्वविद्यालय ने देश के लिए समर्पित अनेक शूरवीर दिए। लेकिन तब वो दौर दूसरा था और अब ये दौर दूसरा है।अर्थात Banaras Hindu University अर्थात BHU क्या अब अपने अवसान काल में आ खड़ा हुआ है? क्या बीएचयू अब कभी पूरब का आक्सफोर्ड कहे जाने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय के राह पर चल पड़ा है?

नीचे कुछ बिंदु है जिसपर विचार रखे गए है।

बीएचयू की हरियाली पर हमला :-

बीएचयू की पहचान केवल इसका सिंहद्वार , VT और बेहतर पढ़ाई ही नही है बल्कि परिसर की हरियाली भी है। 1360 एकड़ में फैले कैंपस के हरेक कोने में पेड़ पौधे खिले पड़े है। लेकिन कुछ वर्षो से ऐसा लागत है की विश्वविद्यालय में सरकार के तरफ से फंड ही नही आ रहा और विश्वविद्यालय को अपना खर्च परिसर के हरे भरे पेड़ो को काटकर बेचने से होने वाले लाभ पर ही खर्च चलाना है। ऐसा ही अगर चलता रहा और नए पेड़ पौधे नही लगाए गए तो लगता है जैसे विश्वविद्यालय एक दिन केवल कंक्रीट का जंगल सा होकर रह जायेगा।


कैंपस के संसाधनों का राजनैतिक रूप से दुरुपयोग :-

कितने लोग को याद है कि कैंपस में कोविड 19 के पहले एक स्पंदन नाम का विश्वविद्यालय वार्षिक सांस्कृतिक कार्यक्रम होता था, जो पहले फैकल्टी स्तर पर होता था फिर हरेक फैकल्टी के विजेता स्टूडेंट्स अपने अपने विधा में अन्य फैकल्टी के विजेता स्टूडेंट्स से प्रतियोगिता करता था और अंत में विश्वविद्यालय चैंपियन होता था। लेकिन covid के बाद से ऐसा लगता है कि स्पंदन हमेशा के लिए खत्म हो गया और विश्वविद्यालय में राजनीतिक कार्यक्रमों का मंच हो गया। आज विश्वविद्यालय का छात्र अगर कोई कार्यक्रम करने के लिए डीन से हॉल एलॉटमेंट कराने जाता है तो उसको दुत्कार के भागा दिया जाता है लेकिन अगर वह किसी राजनैतिक पार्टी या अमुक संगठन का कार्यकर्ता है तो फिर उसको आसानी से कार्यक्रम करने के लिए हॉल मिल जाता है। क्या इससे विश्वविद्यालय के क्रिएटिव स्टूडेंट्स के मन में निराशा नही उत्पन्न होती होगी?


सुरक्षा में चूक :-

सितंबर 2017 में विश्वविद्यालय के एक छात्रा के पैंट में अंदर किसी यौन कुंठित मानसिकता वाले बलात्कारी ने हाथ डाल दिया। इसको लेकर लंका गेट पर एक महाआंदोलन हुआ था । खबर अंतर्राष्ट्रीय सुर्खिया बनी थी। आंदोलन को पीएसी से लाठी चार्ज करवाकर कुचलवा दिया गया। फिर उससे भी वीभत्स घटना IIT BHU में एक महिला छात्र के साथ गैंगरेप जैसी वीभत्स घटना हुई। आरोपी 60 दिनों बाद पकड़े गए।
ऐसी ही ना जाने कितनी घटना परिसर के अंदर महिला छात्रों के साथ हुई जो सुर्खियों में नही आ सकी।
हालाकि इससे छोटे छोटे दुर्घटना जैसे छिनैती, मारपीट, लूट जैसी घटनाएं लगातार होती जा रही है। करोड़ों की प्रॉक्टोरियल बोर्ड माटी के पुतलो की तरह मूकदर्शक बनी रहती है।


पब्लिक टॉयलेट की कमी :-

विश्वविद्यालय परिसर में आपको जगह जगह बोर्ड दिख जायेगा की दो पहिया वाहन पर तीन सवारी दंडनीय अपराध है लेकिन आपको कैंपस में कहीं भी यह नहीं दिखेगा की खुले में पेसाब करना मना है। कैंपस में आपको सड़क के किनारे जहां तहां झाड़ियों के पीछे लोग पेशाब करते हुए दिख जायेंगे। ये वो लोग होते है जो बाहरी होते है विवि के छात्र नही। 
लेकिन ऐसा होता क्यों है की लोग कैंपस में सड़क के किनारे पेशाब करते है। इसका कारण है कैंपस में सार्वजनिक टॉयलेट की कमी। सार्वजनिक टॉयलेट के नाम पर कैंपस में केवल VT पर एक मात्र टॉयलेट नही नही तो दूसरा सर सुंदर लाल हॉस्पिटल में मिलेगा। इसके अलावा कही भी सार्वजनिक टॉयलेट नही है। इसलिए जब भी कोई बाहरी कैंपस में आता है और उसको पेशाब लता है तो वो बाहर ही करने को मजबूर हो जाता है।


लाइब्रेरी का 24×7 ना होना :-

बीएचयू जैसे केंद्रीय विश्वविद्यालय में करोड़ों की लाइब्रेरी में रात के 10 बजे ही ताला लगाकर बंद कर दिया जाता है। छात्र 10 बजे के बाद लाइब्रेरी में पढ़ नही पाते। साइबर लाइब्रेरी चौबीस घंटे खुलती तो है लेकिन उसमे सीट बहुत कम है। जिस विश्वविद्यालय में लगभग 36 हजार छात्र पढ़ते हो उसमे 500 सीट वाली लाइब्रेरी जो 12 घंटे खुलती हो वो छात्रों की जरूरत को कैसे पूरा करेगी?

कैंपस में बाहरी लोगों का प्रवेश :-

बीएचयू एक सार्वजनिक विश्वविद्यालय है जहां पर कोई भी, कभी भी ,कही भी ,आराम से, बिना रोक-टोक के आ, जा सकता है। इससे कैंपस के विभिन्न जगहों पर शहर के बाहरी रईस लोग अपनी बड़ी बड़ी गाड़ियों से पिकनिक स्पॉट के तौर पर प्रयोग करते है । जो थोड़ा मनबढ़ होते है वह कैंपस के छात्रों से मारपीट और छात्राओं से छेड़खानी और कमेंटबाजी करते है। फिर आराम से निकल लेते है। कैंपस में विश्वनाथ मंदिर और हॉस्पिटल होने के नाते एक बहाना भी मिल जाता है बहरियो के प्रवेश करने का।


एफिलिएटेड कॉलेजों के साथ दोहरा व्यवहार :-

बीएचयू से संबंधित कॉलेजों के छात्रों को डिग्री तो बीएचयू की मिल जाती है लेकिन अन्य सुविधा जैसे लाइब्रेरी कार्ड , हेल्थ कार्ड , lab में एंट्री , गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा इत्यादि नही मिल पाती । जिससे संबंधित कालेजों के स्टूडेंट्स पिछड़ जाते है।

RGSC के साथ सौतेला व्यवहार :-

बीएचयू का साउथ कैंपस राजीव गांधी साउथ कैंपस के नाम से जाना जाता है। यह मिर्जापुर के बरकछा में स्थित है। Rgsc में जगह की कोई कमी नही है लेकिन वहा फंड की कमी के कारण विकास नहीं हो पा रहा। इन्फ्रास्ट्रक्चर की बहुतायत कमी है। कोर्स के फीस बहुत महंगे महंगे है। और प्रोफेसर की कमी है। इससे होता क्या है की स्टूडेंट्स तो एडमिशन ले लेते है और पढ़ाई नहीं होती ।


भ्रष्टाचार का बोलबाला :-

बीएचयू में उच्च पदों पर नियुक्त कई अधिकारियों द्वारा विगत कुछ महीनो में करोड़ों रुपयों के गबन का मामला सुर्खिया बटोरा था। बहुत सारे ऐसे ही मामले खुले नही और फाइलों में दबा दिए गए। इससे bhu को आर्थिक नुकसान हुआ जिसकी भरपाई छात्रों के जेब से अप्रत्यक्ष रूप से किया जाता है।
ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों को तुरंत निष्कासित करना चाहिए।


संसाधनों की मरम्मत ना करना:-

बीएचयू में संसाधनों की कोई कमी नही है लेकिन जो संसाधन अभी है वह या तो बहुत पुराने हों गए है या आउट डेटेड हो चुके है या खराब हुए पड़े है और उनको मरम्मत की जरूरत है। लेकिन बीएचयू प्रशासन मरम्मत की जहमत नहीं उठाता। इनको कबाड़ होने देता है। छात्र संसाधनों का लाभ नहीं ले पाते और lab के अभाव में अपनी प्रतिभा के साथ समझौता कर लेते है।

जातिवाद और जी हुजूरी प्रथा :-

बीएचयू आने के बाद ऐसा लगता है की जो जितना पढ़ा लिखा होता है वो उतना ही जातिवाद करने लगता है। जातिवाद के कारण बीएचयू में सालाना कइयों सौ प्रतिभाएं दम तोड देती है या फिर पंगु हो जाती है। चरण चुम्बन या फिर जी हुजूरी प्रथा ने बीएचयू का जितना बंटाधार किया उतना अन्य किसी चीज ने घात नहीं पहुंचाया। 

ऐसे अनेक कारण है जो लगातार बीएचयू को अवनति की ओर लेकर जा रहे है और बीएचयू की साख में बट्टा लगा रहे। जिसके लिए उच्च पदों पर बैठे अधिकारी जो थोड़ा ज्यादा , और साथ ही क्लास के बेंच पर बैठे छात्र जो थोड़ा कम ही सही लेकिन जिम्मेदार तो है।


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