छोटे से कंधे पर सारे बोझ उठाती हूं, बेटी हूं शायद इसीलिए जल्दी बङी हो जाती हूँ:- शिल्पा सिंह


छोटे से कंधे पर सारे बोझ उठाती हूं, बेटी हूं शायद इसीलिए जल्दी बङी हो जाती हूं

ससुराल में पराये घर से जाती हूं, मायके में पराया धन कहलाती हूं, बेटी हूं साहब बस इसीलिए जल्दी बड़ी हो जाती हूं

घर के कामों में हाथ बंटाती हूं,पढ़ाई में भी अव्वल आती हूं, बेटी हूं ना इसलिए जल्दी बड़ी हो जाती हूं
घर की आन बान और शान बन जाती हूं, अपने सपनों को छोड़ सबके ख्वाबों को सजाती हूं, सिर्फ एक घर को नहीं दो-दो घरों को चलाती हूं, बेटी हूं इसलिए जल्दी बड़ी हो जाती हूं

अपने दुखों को भूल लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाती हूं, फिर भी किसी को खटकती हूं तो किसी को भांती हूं, झूठी मुस्कान के पिछे सारे दर्द छिपाती हूं, बेटी हूं जनाब बस इसीलिए जल्दी बड़ी हो जाती हूं
पापा की परी, मां की लाडली कहलाती हूं, फिर भी न जाने क्यूं दहेज के लिए जलायी जाती हूं, बेटी हूं शायद इसीलिए जल्दी बड़ी हो जाती हूं।   

   ✍️ ©  Shilpa Singh Maunsh

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