घर की पूरी जिम्मेदारी अकेले ही अपने कंधे पर उठाता है, वहीं तो पिता कहलाता है:- शिल्पा सिंह

घर की पूरी जिम्मेदारी अकेले ही अपने कंधे पर उठाता है, वहीं तो पिता कहलाता है।
खुद की खुशीयों के बदले,पूरे परिवार को हंसाता है, वहीं तो पिता कहलाता है।
बेटियों के लिए अपना सब कुछ खुशी खुशी लुटाता है, वहीं तो पिता कहलाता है।
बेटों के लिए दिन रात पूंजी जुटाता है, वहीं तो पिता कहलाता है।
मां-बाप , पत्नी और बच्चे बस इनके लिए मुस्कुराता है, वहीं तो पिता कहलाता है।
दिन-रात दर-बदर भटक के दो जून की रोटी कमाता है, वहीं तो पिता कहलाता है।
अपनों के सपनों के खातिर खुद के ख्वाब भूलाता है, वहीं तो पिता कहलाता है।
कैसी भी तकलीफ हो पर अपनों के खातिर झूठा ही सही मगर मुस्कुराता है, वहीं तो पिता कहलाता है।
थक-हार के लौटने के बाद भी घंटों परिवार संग वक्त बिताया है, वहीं तो पिता कहलाता है।
घर की एक-एक ईंट के वास्ते दिन रात पसीना बहाता है, वहीं तो पिता कहलाता है।     


          ✍️©   Shilpa Singh Maunsh

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