जबड़ा खोने के बाद भी मुस्कुराया जीवन: बीएचयू ने रचा इतिहास


कोरोना काल में ब्लैक फंगस (म्यूकोरमाइकोसिस) के कारण अपना जबड़ा खो चुके 75 वर्षीय मरीज को बीएचयू के डॉक्टरों ने नया जीवन दिया है। तीन साल बाद हुई जटिल सर्जरी से अब वह सामान्य तरीके से खाना खा सकते हैं और साफ बोल सकते हैं। यह कारनामा बीएचयू के दंत चिकित्सा विज्ञान संकाय की टीम ने अंजाम दिया है।

कोरोना काल की मुश्किलें और ब्लैक फंगस का हमला

मरीज को कोविड-19 के दौरान ब्लैक फंगस ने अपनी चपेट में ले लिया था। संक्रमण इतना गंभीर था कि उनका पूरा ऊपरी जबड़ा निकालना पड़ा। इसके बाद खाना निगलने, बोलने और यहां तक कि चेहरे की बनावट तक बिगड़ने से उनका जीवन मुश्किलों से भर गया।

तीन साल का इंतजार और फिर चमत्कारिक सर्जरी

बीएचयू की टीम ने "क्वाड जाइगोमा इम्प्लांट" तकनीक का इस्तेमाल करते हुए मरीज के गाल की हड्डियों में चार इम्प्लांट लगाए। इन्हीं इम्प्लांट्स के सहारे एक खास धातु का फ्रेम बनाया गया, जिसमें मैग्नेट लगे थे। इन मैग्नेट्स की मदद से कृत्रिम दांतों को मजबूती से जोड़ा गया।

सर्जरी की चुनौतियां और डॉक्टरों की मेहनत

मरीज की उम्र अधिक होने के कारण सर्जरी और भी जटिल थी। प्रो. रमेश सोनी की अगुआई में डॉ. प्रियांक राय, डॉ. स्टैनज़िन, डॉ. स्निग्धा और डॉ. नचम्मई ने मिलकर यह असंभव सा लगने वाला काम किया। टीम का कहना है कि यह तकनीक न केवल खाने-बोलने की क्षमता लौटाती है, बल्कि चेहरे की सुंदरता भी बरकरार रखती है।

"मुझे नहीं लगा था कि फिर से खा पाऊंगा":मरीज की खुशी

सर्जरी के बाद मरीज की जिंदगी पूरी तरह बदल गई। उन्होंने बताया, "मैंने सोचा भी नहीं था कि कभी सामान्य तरीके से खाना खा पाऊंगा। डॉक्टरों ने मेरी जिंदगी में नई रोशनी भर दी।" अब उनके चेहरे पर न सिर्फ मुस्कान लौटी है, बल्कि आत्मविश्वास भी बढ़ा है।

बीएचयू का गौरव: दुनिया को दिखाई नई राह

दंत चिकित्सा संकाय के प्रमुख प्रो. एच.सी. बरनवाल ने कहा, "यह सफलता दिखाती है कि आधुनिक तकनीक से कोविड के बाद की चुनौतियों का भी हल निकाला जा सकता है।" यह केस न सिर्फ बीएचयू के लिए मील का पत्थर है, बल्कि उन सभी के लिए उम्मीद की किरण है जो ऐसी समस्याओं से जूझ रहे हैं।

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