"कुलपति पिटते रहे और चमचे डटे रहे" ; बीएचयू के बसंत पंचमी का अनूठा वाकया।

An donkey with a strap around its neck, having 'Chancellor' written on it, and dogs barking around it. Capture this moment and share it with us!
प्रतीकात्मक चित्र

"कुलपति पिटते रहे और चमचे डटे रहे" ; बीएचयू के बसंत पंचमी का अनूठा वाकया।


बात आज से लगभग 37 वर्ष पूर्व की है। तब बीएचयू के कुलपति आर पी रस्तोगी जी हुआ करते थे। रस्तोगी जी छः साल के लिए बीएचयू के कुलपति बनकर आए थे। इसी बात को लेकर वो निरंकुश हो चले और विश्वविद्यालय मनमाने ढंग से चलाने लगे थे। स्टूडेंट्स से मिलना-जुलना बंद कर दिए और बीएचयू की समस्यायों से अब उनको कोई लेना देना नहीं रह गया था। स्टूडेंट्स उनके इस मनमाने रवैए से अजीज आ चुके थे।

हालाकि कुलपति रस्तोगी जी के इस मनमाने आचरण के पीछे विश्वविद्यालय के अन्य पदाधिकारियों का भी बहुत बड़ा हाथ था। विश्वविद्यालय के छात्र इन पदाधिकारियों को चमचा कहते थे।कुलपति रस्तोगी एक तरह से सामंती राजा हो चले थे जो अपने पदाधिकारियों अर्थात दरबारी चमचो के बहकावे में आ गए थे। चमचे दिन भर कुलपति रस्तोगी को घेरे रहते और विश्वविद्यालय के विकास कार्यों के लिए मिलने वाले सरकारी फंड का बंदरबांट करके मौज उड़ाते। बीएचयू अब भगवान भरोसे हो चला था।

विश्वविद्यालय के स्टूडेंट्स कुलपति और उनके चमचों के आदत से ऊब चुके थे और अब बदलाव चाहने लगे थे क्योंकि जिस ढंग से कुलपति रस्तोगी जी विश्वविद्यालय चला रहे थे वो छः वर्षो में बीएचयू की नीव दरका देते।

दिसंबर 1987 की जनवरी की सर्दी जैसे तैसे बीती। फरवरी का महीना आया और परिसर में बसंत का आगमन हो चला था। बसंत पंचमी आने वाली थी। BHU और बसंत पंचमी! आहाहा! क्या अनूठा मिश्रण होता है बीएचयू के फिज़ाओ में। आजकल के भाषा में कहे तो मधु और महुआं के रस का एक नशा सा तैर रहा होता है। एकदम "कड़क मॉकटेल" माफिक।चारों ओर मानो अमृत ही अमृत बरस रहा हो। बीएचयू का कोना-कोना,पत्ता-पत्ता सराबोर होकर मदमस्त हो जाता है। कैंपस में जिधर भी निकल जाइए उधर ही रस।
जबकि इधर विश्वविद्यालय के छात्रों के बीच इसी बसंत के महीने में एक ज्वालामुखी धधक रहा था। जो बहुत जल्द ही फटने वाला था। अंततः वो दिन भी आ ही गया और तय हुआ कि ज्वालामुखी बसंत पंचमी के दिन निकलने वाली झांकी के दिन फटेगा।

छात्रों ने बेहद ही गुप्त तरीके से योजना बनाना शुरू कर दिया।
छात्र रात में योजना बनाते और दिन में योजना की तैयारी करते। इधर विश्वविद्यालय प्रशासन को भी इसकी भनक लग चुकी थी कि अबकी बसंत पंचमी के झांकी में छात्र कुछ गड़बड़ करने वाले है। विश्वविद्यालय प्रशासन और छात्रों के बीच अनकही चोर पुलिस का खेल शुरू हो चुका था।

बसंत पंचमी के दिन निकलने वाली झांकी के ठीक एक दिन पहले की रात छात्रों ने करौंदी के किसी धोबी के यहां से 50rs किराए पर एक गधा मांगा लिया था। और कैंपस में घूमने वाले आवारा कुत्तों को पकड़ के एक जगह इकट्ठा कर लिया था।
बसंत पंचमी के दिन तड़के सुबह ही एक खुली ट्रक भी मंगवा ली गई थी। दो बड़े भगोने प्योर दूध में भरपूर भांग घोला गया और गधों के साथ ही सभी आवारा कुत्तों को भरपेट भांग वाला दूध पिला दिया गया। भांग ने थोड़ी देर में असर दिखाना शुरू कर दिया। और हुआ ये की कुत्ते और गधे नशे में इतने चूर हो गए की उनसे हिला डुला भी नहीं जा रहा था। कुत्तों और गधे पर भांग का नशा दिन चढ़ने के साथ साथ चढ़ता ही गया।और जो सबसे खतरनाक बात थी वो यह थी की गधे के गले में छात्रों ने एक तख्ती टांग दी गई जिसपर चटक लाल रंग से "कुलपति" लिखा हुआ था और कुत्तों के गले में टंगी तख्तियों पर "चमचा" लिख दिया गया था। गधे को खुली ट्रक पर एकदम बीच में बैठाया गया और उसके चारो ओर भांग के नशे में धुत्त कुत्तों से घिरा हुआ दिखाया गया। सब कुछ एकदम आर्टिस्टिक और सिंबॉलिक हो रहा था। 

इधर प्रशासन को छात्रों के इस कारनामे की भनक लग चुकी थी। कुलपति और उनके चमचे अधिकारियों ने लक्ष्मण दास गेस्ट हाउस के पास ही एक प्लाटून पीएसी लगवा दिया था ताकि झांकी को कुलपति के सामने जाने से पूर्व ही रोक लिया जाय। 

इधर छात्र भी अब ठान ही लिए थे की "अब या तो आर होगा या पार"। मालवीय भवन के सामने कुलपति रस्तोगी जी का मंच सजा। कुलपति के साथ अगल बगल विश्वविद्यालय के शीर्ष अधिकारी बैठे थे। बारी बारी से झांकियां गुजरने लगी। जैसे ही आर्ट्स फैकल्टी वालों की झांकी एलडी गेस्ट हाउस के पास पहुंची कोहराम मच गया। "खुले ट्रक पर एक गधा बैठा हुआ जिसके गले में कुलपति की तख्ती पड़ी हुई है और उसके चारो ओर कुत्ते बैठे है जिनके गले में चमचा की तख्ती पड़ी हुई है", देखते ही पीएसी के जवान टूट पड़े। छात्रों पर लाठीचार्ज कर दिया गया। लाठीचार्ज से झांकी में अफरा तफरी मच गई। छात्र जैसे तैसे ट्रक लेकर आगे कुलपति के सामने भागने लगे। पीएसी के जवान ट्रक रोकने में लग गए। लाठीचार्ज होने पर बहुत से छात्र इधर उधर कूद कर भागने लगे। लेकिन जैसे तैसे ट्रक मालवीय भवन के सामने सजे कुलपति मंच के पास ट्रक रोककर फरार हो गए। लेकिन भांग के नशे में धुत्त गधा और कुत्ते पीएसी वालों के लाठी मारने के बावजूद भी टस से मस होने का नाम नहीं ले रहे थे। पीएसी वाले गधे को पीटते रहे लेकिन कुत्ते जरा भी टस से मस नहीं हुए।

तब पीएसी के जवान कुत्तों को टांग टांग कर ट्रक से उतार कर फेकने लगे। गधे को भी जैसे तैसे उतारा गया। कुलपति और अन्य पदाधिकारी यह सब देख अपना मुंह चुराकर मंच से उतरकर भागे। बीएचयू के बसन्त पंचमी को कवर करने आए पत्रकारों ने इस घटना को समाचार पत्रों में खूब उछाला। समाचार पत्रों में इस घटना की छवियां अगले दिन बहुत ही मोटे मोटे अक्षरों में कुछ इस तरह छपी कि,"कुलपति पिटते रहे लेकिन चमचे डटे रहे।"

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