BHU में फर्जीवाड़ा,फेलोशिप का 5.56 लाख रुपए लेकर फुर्र हुई शोध छात्रा।


BHU में फर्जीवाड़ा,फेलोशिप का 5.56 लाख रुपए लेकर फुर्र हुई शोध छात्रा।


हाल ही में बीएचयू में एक मामला पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान (IESD) का है. जहां 5 लाख 56 हजार रुपए के स्कैम का मामला सामने आया है। जहां भुगतान के दस्तावेज पर विभागाध्यक्ष के फर्जी हस्ताक्षर भी हुए हैं। इसकी शिकायत करने वाले अनुज कुमार मिश्रा ने प्रकरण की शिकायत लंका थाने पर की है। एसीपी भेलूपुर ने जब इस FIR प्रकरण की जांच की तो उन्होंने इसमें गड़बड़ी पाई है. लेकिन FIR तभी हो सकता है जब बीएचयू चीफ प्रॉक्टर शिकायत दर्ज करवाए। लेकिन लंका थानाध्यक्ष अभी चीफ प्राक्टर से शिकायत प्राप्त होने का इंतजार कर रहे.


खबर विस्तार से :

कौन है छात्रा जिसपर लगा है फर्जीवाड़ा का आरोप :-

हरेक विश्वविद्यालय में JRF Qualify करके पीएचडी में एडमिशन पाने वाले छात्रों को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के तरफ से फेलोशिप(32 हजार प्रति महीना) दिया जाता है। ऐसा ही फेलोशिप M.Phil. करने वाले छात्रो को भी प्राप्त होता है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के शोध छात्रों को भी यह फेलोशिप मिलता है। और फर्जीवाड़ा इसी फेलोशिप में सामने आया है। 2017 में एम फिल की छात्रा स्मिता पांडेय बीएचयू के IESD डिपार्टमेंट में MPhil में दाखिला लिया । फिर पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर स्थित विद्यालय में शिक्षक के पद पर नियुक्ति हो गई। यहां से वह लगातार वेतन भी ले रही थी और इधर बीएचयू में एनरोलमेंट लेने के बाद उन्होंने यूजीसी की तरफ से रिसर्च फेलोशिप के रूप में 5.56 लाख रुपये एक वर्ष तक लेती रही और फिर बीएचयू कैंपस छोड़ दिया। अब पेंच यही पर फस गया की दो जगह पर एक साथ ही इनरोलमेंट लिया और फिर दोनो जगह से एक साथ फेलोशिप और वेतन उठाया।


किस विभाग का है यह मामला :-


यह प्रकरण बीएचयू के पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान (IESD) का है ।जहां भुगतान के दस्तावेज पर विभागाध्यक्ष के फर्जी हस्ताक्षर भी हुए हैं?इस मामले के शिकायतकर्ता अनुज कुमार मिश्रा ने प्रकरण की शिकायत लंका थाने पर की है। लेकिन मुकदमा दर्ज करने के लिए चीफ प्राक्टर से शिकायत प्राप्त होने का इंतजार कर रहे हैं।

6 साल से बाद भी नही हो सकी रकम वापसी :-

यह मामला अंत्यंत पुराना है। फर्जीवाड़ा में संलिप्त स्मिता पांडेय 2015 से 2017 के मध्य एम फिल की पढ़ाई पूरी की। और फेलोशिप का आनंद उठाया। फर्जीवाड़ा सामने आने पर बीएचयू द्वारा गठित फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने भी जांच पूरी कर करके छात्रा स्मिता पांडेय को दोषी पाया और उसको कैंपस में प्रवेश पर पाबंदी लगा दी, साथ ही धनराशि वसूली के आदेश दे दिए। लेकिन चालाक स्मिता पांडेय छह साल बाद भी कोई रकम वापस नहीं की और देश के टैक्स से आने वाले फेलोशिप और वेतन साथ साथ दोनो डकार गई।


आखिर क्यों नही हो सकी रकम वापसी :-

फर्जीवाड़ा करने वाली बंगाल की स्मिता पांडेय को विभाग 6 साल से केवल रिमाइंडर नोटिस भेजकर मूक हो जाता है। ऐसा लगता है मानो बीएचयू का आईएसडी विभाग स्मिता पांडेय से रिमाइंडर गेम खेल रहा हो। सीधे सीधे कहा जाय तो ऐसा लगता है जैसे बीएचयू का आईएसडी विभाग मामला दबा देना चाहता हो।लेकिन अब मामला दबाने के कारण यूजीसी ने बड़ी कार्रवाई की तैयारी की है।जिसमे कई प्रोफेसरों पर भी एक्शन हो सकता है। 


अब देखना दिलचस्प होगा कि UGC के कारवाई में कौन बचता है कौन नपता है। क्योंकि जो शामिल है वो तो कदापि नहीं बचने वाला।

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