बीएचयू के छात्रों द्वारा पहली मोबाइल से चलने वाली मृगतृष्ण पत्रिका ने किया एक वर्ष पूरा

■ काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्रों ने पिछले लॉकडाउन में की थी पत्रिका की शुरुआत।

■ पत्रिका की टीम करती है मोबाइल से पत्रिका को तैयार।

■ मोबाइल से प्रकाशित होने वाली पहली पत्रिका बनी मृगतृष्णा पत्रिका 


पिछले वर्ष जब पूरा देश कोरोना जैसी भयंकर महामारी के दौर से गुजर रहा था ठीक उसी वक्त काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अध्ययनरत छात्र प्रिंस तिवाड़ी ने अपने मित्रों के साथ मिलकर अपने मोबाइल से मृगतृष्णा नामक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया। 
धीरे धीरे मृगतृष्णा की ख्याति विश्वभर में फैलने लगी।
संयुक्त राष्ट्र संघ के कई बड़े अधिकारी, पेरिस में स्थित भारतीय राजदूतावास, कैलाश सत्यार्थी,किरण बेदी सहित देश-विदेश की कई नामचीन हस्तियों ने विद्यार्थियों के इस प्रयास की सराहना की।
धीरे धीरे जब कारवां बढ़ता गया तो पत्रिका ने भी सफलता के शिखर को छुना प्रारंभ कर दिया।
मृगतृष्णा की टीम ने मिलकर कई महत्वपूर्ण विशेषांक प्रकाशित किए।
जिसमें दुनिया की 100 सफलतम महिलाओं की प्रेरणादायक कहानियां, कोरोना वॉरियर्स की अनकही, अनसुनी कहानियां पैंडेमिक पैरागॉन, ऐसे अनेकों विशेषांक प्रकाशित किए।मृगतृष्णा पत्रिका के प्रधान संपादक ने एक वर्ष पूरे होने के अवसर पर बताया की मृगतृष्णा पत्रिका दुनिया की पहली मोबाइल से प्रकाशित होने वाली पत्रिका है । पाठक इस पत्रिका देख भी सकते हैं, पढ़ भी सकते हैं और सुन भी सकते हैं। अभी हालही में मृगतृष्णा पत्रिका ने लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड, वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी आवेदन किया है। वहां से वैरिफिकेशन होने की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई है। जल्द ही यह एक और खुशखबरी मिलने वाली है।
28 जून मृगतृष्णा परिवार के लिए एक मील का पत्थर है जिसे वह पूरे हर्षोल्लास के साथ मना रहे हैं। हफ्ते भर से पत्रिका की टीम काफ़ी उत्साह के साथ पत्रकारिता संवाद, कवि सम्मेलन, साहित्यिक प्रश्नोत्तरी, गायन, नृत्य, आशुभाषण, फोटोग्राफी एवं ओपन माइक जैसी आभासी बातचीत और प्रतियोगिताएं आयोजित कर युवाओं का मनोबल बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं जिसमें देश भर के विद्यालयों और विश्वविद्यालयों के छात्र बढ़ चढ़ कर भाग ले रहे हैं। । समस्त मृगतृष्णा परिवार इस सालगिरह को लेकर उत्सुक और हर्षविभोर है।
प्रिंस ने बताया कि एक वक्त था जब हमारे पास वास्तव में एक ठीक सा फोन भी नहीं था। एक टुटा फुटा फोन उस वक्त हुआ करता था लेकिन फिर भी हम उसी से पत्रिका का प्रकाशन करते रहे।
आपदा को अवसर में बदलकर पूरी टीम ने यह साबित कर दिया की जहां चाह है वहां राह है।

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