बनारस से अंतिम विदाई के बाद :-स्वप्निल पूर्व छात्रा MMV BHU

बनारस से अंतिम विदाई के बाद

बनारस से मोह भंग होने का मानो नाम ही नही ले रहा है। यहाँ गुजरे 3 साल जैसे हज़ारों रंग बिरंगी यादें दे गये।
मेरा बनारस भारत और विश्व में नहीं, अपितु त्रिलोक में सबसे न्यारा है-

"बसाई शम्भू ने सबसे अलग त्रिशूल पर काशी"
इसकी महत्ता को शब्दों की परिधि में नही समेटा जा सकता।यह अलौकिक व अवर्णनीय है-जहाँ विश्व के कोने-कोने से श्रद्धालु ,पर्यटक व विद्यार्थी इसकी शोभा में चार चाँद लगाते हैं।

      मंदिरों के इस शहर की पवित्रता, महामना की बगिया का सौंदर्य-लग रहा,मेरा मन अभी भी वही विचरण कर रहा। जब कभी मन अशांत हो,तो नए' विश्वनाथ मन्दिर' के प्रांगण में किसी शांत कोने में जाकर बैठ जाना, "जय जय भगीरथ नंदिनी,मुनि चय चकोर चंदिनी"-के सुमधुर संगीत में घुल जाना,अस्सी पर शामों को कल-कल करती गंगा में पूर्णिमा के चाँद के अलौकिक प्रतिबिम्ब को निहारना-सब कुछ याद आ रहा है।
   कैसे "नमः पार्वतीपतये हर हर महादेव" और "बम बम बोल रहा है काशी" के एक-एक शब्द हम में नया जोश,नयी उमंग भर देते थे। सावन के महीने की बात ही निराली थी।
        भारत का प्राचीनतम शहर-"मेरा जन्म महाश्मशान,मगर मैं जिन्दा शहर बनारस हूँ।"-मुझे गर्व है कि मैंने AU के AIR 1 और DU की top merit में आने के बाद भी इस विशाल सिंहद्वार वाली राजधानी BHU को अपने विद्याध्ययन के लिए चुना। 
   अंत में, मेरे पिता श्री द्वारा रचित काव्य के कुछ अंश-
"ॐकार शब्द का उद्गम भी,चंद्रांकित कैलाशी में है।
तीनो पापों को हरने की सारी शक्ति काशी में है।।"
Missing bhu, missing being #बनारसिया
 बनारस की कुछ तस्वीरें संलग्न हैं, ज़रा पहचानिये।
              ✍️© -स्वप्निल
          पूर्व छात्रा,(2016-19)
          महिला महा विद्यालय
                    BHU

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