गुरुजी के नाम से मशहूर माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दूसरे संघ प्रचारक थे. इनका जन्म 19 फरवरी, 1906 को महाराष्ट्र के रामटेक में हुआ था और 5 जून 1973 को नागपुर में उनका निधन हुआ था
आरएसएस के द्वितीय सर संघचालक माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर को गुरुजी की उपाधि बीएचयू में तब मिली थी, वो जब BHU के जूलॉजी डिपार्टमेंट में अस्थायी प्रोफेसर थे। सन 1931 में महामना मदन मोहन मालवीय के आमंत्रण पर महाराष्ट्र से बीएचयू आए गोलवलकर जूलॉजी विभाग के छात्रों को पढ़ाने लगे ।इसके अलावा उन्होंने दर्शन, अंग्रेजी व अर्थशास्त्र की भी शिक्षा दी। छात्रो से उनका इस तरह लगाव रहा कि गरीब छात्रों की फीस और उनके किताब-कॉपी का खर्च भी अपने वेतन से देते थे। बीएचयू में छात्रो ने ही तब उन्हें गुरुजी कहकर संबोधित किया। गुरुजी ने बीएचयू से ही की पढ़ाई, अपनी प्रथमिक शिक्षा नागपुर के ईसाई मिशनरी की ओर से संचालित हिस्लाफ कॉलेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद गोलवलकर ने 1924 में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में प्रवेश लिया. यूनिवर्सिटी में इन्होंने बीएससी और एमएससी की परीक्षा पास की.
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से ही उनका संघ में प्रवेश हुआ था। आरएसएस के संस्थापक डा. बलिराम हेडगवार जब बीएचयू आए तो उन्होंने दोनों को मिलवाया। इस बारे में हुई बातचीत में गांधीनगर केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आरएस दुबे के मुताबिक बीएचयू में छात्रो के बीच उनकी अधिक लोकप्रियता रही। गोलवलकर जी का संघ में प्रवेश हुआ और आगे चलकर संघ के दूसरे सर संघचालक भी बने। अटल बिहारी बाजपेयी सहित कई शीर्ष नेताओं का जुड़ाव भी इसी दौरान हुआ। 8 अप्रैल 1938 को बीएचयू के एक कार्यक्रम में तीनों विभूतियां एक साथ एक मंच पर थीं।
माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर को संघ उन्हें 'गुरुजी' कहकर बुलाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब ऐसे 16 लोगों के बारे में किताब 'ज्योतिपुंज' में जिक्र करते हैं, जिन्होंने उनकी जिंदगी को प्रभावित किया, उसमें एमएस गोलवलकर को 'पूजनीय गुरुजी' कहकर संबोधित किये हैं ।
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