सामासिक प्रतिनिधित्व के वाहक है "कृष्ण" सभी के चित्त को हरण करनेवाला :- विक्रम जमाली

krishna


कृष्ण,कान्हा,  नँदलाल, आदि-आदि नाम हम जैसे ही सुनते हैं वैसे ही मस्तिष्क में एक मधुर सरस्, मन को शांति देने वाली,वातावरण को गुलज़ार करनेवाली एक संगीत सुनाई पड़ती है। पता नही वो आवाज कहाँ से आती है लेकिन वो संगीत एक अद्भुत रोमांच पैदा करती है। शरीर में एक कंपन जन्म लेती है। ऐसा लगता हैं बस दुनिया यही है। बिल्कुल शांत, निविड़,जैसे अब अभी बस अभी लौकिक से पारलौकिक में एकाकार हो जाएंगे। एकदम विचित्र है न ये  अनुभूति! ये अनुभूति क्यों होती है?क्या कारण है? शायद मेरी वागेन्द्रियाँ उसे अभिव्यक्त करने में असमर्थ है! आखिर वह कौन सी ऐसी ताकत है!जो मुझे उनके करीब खींच रहा है! कंही वे विचार तो नही जो उन्होंने कर्म को लेकर रखा था। कर्मण्येवाधिकारस्ते माँ…या जो पवित्र ग्रन्थ गीता का मूल तत्व है। "कर्म"  ..अच्छा! यह वही कर्म है न जिसे आधुनिक वेस्टर्न फिलॉसफर कांट ने उसे "ड्यूटी फ़ॉर ड्यूटी" में बदल दिया! खैर..वेस्टर्न फिलॉसफरों का यही काम ही रहा है। मुझे एक और फिलॉसफर याद आ रहे हैं। 'जेम्स मिल' जिनका मुझे एक काम भी याद आ रही है! इन्होंने भारत के इतिहास को सांप्रदायिक तरीके से विभाजन कर दिया था-- हिन्दू काल,मुस्लिम काल आदि-आदि, इसका कारण तो एक ही था उपनिवेशवाद की अपनी जमी-जमाई सत्ता कायम रखना…. बाहरहाल वही जो मेरे कृष्ण हैं, उन्होंने क्या किया?क्या उन्हें किसी खाँचे में फिट कर दें!नही-नही..अच्छा तो क्या वे हिन्दू थे!जो जयदेव ,विद्यपति,और सूरदास जैसे लोग भावविभोर होकर,एकदम तल्लीन होकर इनसे एक त्राण पा रहे थे! क्या वे मुस्लिम थे!जो रहीम,नज़ीर,और निदा फ़ाज़ली जैसे लोगों तल्लीन होकर उनका नाम ले, लेकर मधुर गीत गा रहे थे। आखिर क्या कारण है कि आज भी जो पशुचारण करते हैं, गौधन की पोषण करते हैं उनका सर्वश्रेष्ठ प्रतिमान श्रीकृष्ण है!क्या कोई ऐसी ताकत है जो उन्हें इनके करीब खिंचती है?आखिर क्या कारण है कि लोग मित्र के रूप में कृष्ण को ही अपना आदर्श पैमाना रखते हैं! वही कवि जिनके बारे में ये कहा जाता है कि जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि, वो भी श्रृंगार की कोई पैमाना स्थापित करते हैं तो उसकी चरम परिणीति उन्हें किसी चाँद में नही दिखता उनकी आदर्श की खोज तो राधा और कृष्ण पर ही खत्म होता है! है न अद्भुत!रोमांचकारी! 


देखिये न जब राणा के वंशज मीरा को जहर दे रहे थे तब वो भी अपनी प्रतिरोध की  त्राण श्रीकृष्ण में ही ढूंढते हैं। उनके प्रेम में वह दीवानी हो जाती है!...

बहरहाल अब मैं अपनी अभिव्यक्ति को विराम देता हूँ मुझे मालूम है ये अधूरा है! लेकिन अधूरे के इस द्वंद में ही आप कृष्ण को महसूस कर पायेंगे!अपनी चित को आप शांत करिये और इस अद्भुत शक्ति को महसूस करिये। अब आप ये भी पूछ सकते हैं इन सभी चीज़ों का कारण क्या है! कारण तो एक ही है, उनका लोकोत्तर होना। त्रिगुणातीत होना। आखिर में एक बात ये की ये लला आपकी किसी वितान में,किसी खाँचे में नही आ पाएंगे। क्योंकि ये है ही अद्भुत!
                "बृन्दाबन के कृष्ण कन्हय्या अल्लाह हू
                    बंसी राधा गीता गैय्या अल्लाह हू"
                               ---निदा फ़ाज़ली।

© विक्रम झा "जमाली"
       हिंदी विभाग
 काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

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