शिकायत तुझे भी है...

शिकायत तुझे भी है ,एक अनसुलझा गुस्सा मुझेमें भी,
ख़फ़ा तू भी,  थोड़ी नाराज़गी मुझमेे भी,
ख़ामोशी में भरा तूफान तू भी है, छलक रहा दरिया से वो सैलाब मुझमें भी,
सुन न मेरी एक पल को ,
जो सच है आज बोल दे,
 डर मत भेद दिल के खोल दे,
 जो हो थोड़ी अहमियत मेरी,
  अगर तेरी नज़र में, 
तो हाथ मे हाथ रख  ,
विश्वास कर 
जो किसी न कहा वो मुझसे मिलके 
ये विश्वास की मिश्री घोल दे। 
 मैंने तो दोस्त माना है तुझें ,
जो दोस्त तो रुठ मत 
बयां कर रंजो ग़म ,
शिकायते जो तेरी है
उनको बेबाक़ बोल दे

✍️ © दीपेंद्र कुमार
       कला संकाय
काशी हिन्दू विश्विद्यालय

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