जब बात खुद पर आती है तो हम अपने पाँव पीछे खींच लेते है।
मकान मालिक किराया मांगना छोड़ेगा नही , प्रशासन नाउम्मीदी की चादर उतारने को तैयार नही ,नेता,मंत्री, संत्री और विधायक अपने क्षेत्रों में जाकर छात्रों के हित में बात करने को तैयार नही। आखिर छात्र किससे गुहार लगाये?
आपको कैप्शन पढ़कर सच तो लगा होगा लेकिन इसके कहे जाने का पर्याय समझ मे नही आया होगा। कोई बात नही , मैं बताता हूँ। चीन के वुहान से निकला कोरोना आज कहर बनकर पूरे विश्व पर टूट रहा है। हालत सबकी खराब है , क्या व्यापारी हो , मजदूर हो , किसान हो , छात्र हो , रेहड़ी-पटरी वाला हो या ठेला-खोमचा वाला हो पूरे देश का ही दिवाला निकल चुका है।
अभी तक सिर्फ एक ही वर्ग कोरोना काल मे भी मज़े से है , और वो है नेताओ का वर्ग।
आपदा को भी अवसर में बदल के रख दिए है सब।
कोरोना से सबसे ज्यादा दो वर्ग ही परेशान हुआ।
मजदूरों पर जो कुछ भी बीता उसको सोशल-मीडिया के माध्यम से पूरा देश अपनी आंखों से देखा और तंत्र पर थू-थू किया।
अब जब मजदूर वर्ग दूसरे प्रदेश से अपने घर थके पाँव धीमे-धीमे ,बिना शोर किये शहरों की नींद में बगैर बाधा पहुचाये लौट आये है । फिर भी एक वर्ग ऐसा है जिसकी सांस सांसत में हैं।
बाहर कमरा लेकर पढ़ाई करने वाला छात्र वर्ग आज अपने घर भले ही है लेकिन उनका ध्यान अभी भी अपने उस 10×10 वर्ग/फ़ीट के कमरे में भटकता है। उसको क्या मालूम कि अबकी घर जाने के बाद वापस अनिश्चित काल बाद ही लौटना है? जब भी बारिश होती होगी और उसे याद आता होगा कि कमरे की खिड़की खुली रह गयी है , महीनों मेहनत से बनाये उसके नोट्स के पन्नो के साथ ही उसका करेजा पसीजने लगता होगा।
रात की बची हुई रोटी थाली में ही पड़ी होगी और फफूँदीया उसपर डेरा डाल दी होंगी , जल्दी जल्दी में बिना मोड़े ही छोड़कर आया हुआ बिस्तर धूल का चादर ओढ़ लिया होगा , हैंगर में टंगे हुए कपड़ो में छिपकलियों ने कब्ज़ा जमा लिया होगा।और गलती से भी अगर कमरे की बत्ती के साथ पंखे वाला स्विच भी ऑफ करना भुला होगा,, तो अबकी मकान मालिक ज्वालामुखी की तरह धधक रहा होगा।
BHU DIARIES के कमेंट सेक्शन में या इनबॉक्स में अब तक सैकड़ो की संख्या में छात्रों ने विनती कर लिखा है कि ,"प्लीज , आप बाहर कमरा लेकर रहने वाले छात्रों का किराया माफ करने के लिये आवाज उठाइये"
कोरोना तो सबके लिये घातक है न? जब परिचालन बन्द है तो छात्र कमरा खाली भी नही कर सकता।
इसका मतलब यह तो नही न कि आप कमरे का किराया वसूले।
मकान मालिक ,लॉज मालिक या फिर प्राइवेट हॉस्टल के मालिक आखिर इतना अमानवीय होकर तीन महीने से घर गए छात्रों से फोन कर के किराया कैसे मांग रहा।
किरायेदार किराया मांगना छोड़ेगा नही , प्रशासन नाउम्मीदी की चादर उतारने को तैयार नही ,नेता,मंत्री, संत्री और विधायक अपने क्षेत्रों में जाकर छात्रों के हित में बात करने को तैयार नही। आखिर छात्र किससे गुहार लगाये?
मकान मालिक tv और मोबाइल पर मजदूरों के दुख-दर्द को देखकर सरकार को कोसते रहे लेकिन जब हम छात्रों के किराया माफ करने की बात आई तो बगले झांकने शुरू कर दिये।
◆मतलब◆
बात जब खुद पर आई तो अपने पाँव पीछे खींचने लगे। छात्रों को सिर्फ वोट बैंक ना समझा जाए , उनकी उठती हुई आवाज भी सुनी जाय।
लॉकडाउन के वक़्त से का किराया माफ होना चाहिये , इसके लिये शासन-प्रशासन को भी उचित कदम उठाना चाहिये।
लेखक BHU के पूर्व छात्र के साथ साथ छित्तूपुर के लॉज में पूर्व निवासी रह चुके हैं।
2 टिप्पणियाँ
स्थिति को थोड़ा और गहराई से समझने की जरूरत है कि आखिर मकान मालिक किराया क्यों मांग रहा है.?सरकार ने मकान मालिको को 1 पैसे की भी छूट नहीं दी है, न तो बिजली के बिल में कोई रियायत ना गृह कर में उसके अलावा भी कई तरह के कर उस पर थोप दिया गया है। तो वो अपना परिवार कैसे चलाएगा, उसे कर भी तो चुकाना है।
जवाब देंहटाएंKam se Kam 2 mahino ka kiraya Kam karna chahiye.....
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