वाराणसी ,बनारस, काशी, आनंदकानन सभी नाम लेते हि उस नगरी का चित्र आंखों के सामने आता है जो गंगा तट पर स्थित है।
वाराणसी गंगा के अलावा दो अन्य नदियों का घर है , वरूणा एवं अस्सी तथा वाराणसी नाम भि ईन दोनों शब्दों के मेल से ही बना है। इतिहास से प्राचीन , पुराणों में वर्णित दुनिया का सबसे पुराना शहर काशी है। यह शंकर कि नगरी है जहां कण-कण में उनका निवास है। यहां आध्यात्म हवा में बहता है। शाम को तुलसी घाट पर भजन हो या फिर दशाश्वमेध घाट कि आरती यहां लोगों कि श्रद्धा असिम है। सुबह कचौड़ी जलेबी यहा का नाश्ता हुआ करता है। यहां कि अपनी भाषा है, यहां हम 'मैं ' का प्रयोग नही करते । यहां का 'मैं' हम है।
बनारस कबीर का प्राकट्य स्थल है । यहां जैन गुरु ने जन्म लिया है। पांचवीं शताब्दि में बुद्ध के चरण कमल यहां पड़े थे । रविदास जी का जन्म यहां हुआ था। यहा आदिशंकराचार्य ने भी कुछ समय गुज़ारा। यह आस्था का अटुट संगम है। यहां लोग मोक्ष प्राप्त करने आते हैं , इस जिवंत शहर में जीने के कम इक्क्षुक मिलेंगे । कई फिल्में काशी को केन्द्र में रख कर बनी है। जैसे 'राजा हरिश्चंद्र' जो १९१३ में दादा साहब फाल्के ने बनाई थी वह काशी कि कहानी है। वाराणसी में हरिश्चंद्र घाट भी है जो सत्य घटना पर आधारित है। काशी में मणिकर्णिका घाट भी ऐतिहासिक घटना पर आधारित है, वहां सती के कान के कुंडल गिरे थे इस लिए वह एक शक्तिपीठ भी है।
यहां कई विभुतियों ने जन्म लिया है जैसे रानी लक्ष्मीबाई। आज़ाद भारत के दुसरे प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री भी वाराणसी के रामनगर से थे। रामनगर कि राम लीला विश्व प्रसिद्ध हैं। वाराणसी के राजघराने का वर्णन पुराणों में वर्णित हैं। पुरी काशी राजा बनारस को हर हर महादेव से संबोधित करती है। हिंदी कवि मुंशी प्रेमचंद भी वाराणसी के लमही के है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय भी विश्व प्रसिद्ध संस्था है जो १०० वर्षों से शिक्षा के क्षेत्र में अपना योग दान दें रही है। गांधी जी जब पहली बार वाराणसी आए थे उस याद में यहां एक गांधी चबुतरा है। यहां भारत माता मंदिर है जिसमें भारत का नक्शा है और भारत माता की प्रतिमा है। यहां साल भर विश्व भर से सैलानि आते हैं। यहां के चाट गोलगप्पे अत्यंत स्वादिष्ट होते हैं। यहां बनारसी पान खाने लोग दूर दूर से आते हैं तथा इसके आॅडर दुनिया भर से मिलते हैं। बनारसी साड़ियों का दुनिया भर में खूब प्रचलन है। यहां हथकरघा उद्योग भी बहुत प्रसिद्ध है। यहां कि कालिन विदेशों में भी आयात की जाती है।
वाराणासी केवल एक शहर नही बल्कि एक आत्मा है जो अमर है। हम बनारस को समझाए और संगीत कि बात ना करें ये तो अन्याय है। बनारस प्रसिद्ध है अपने विश्व प्रसिद्ध घरानों के लिए ।एक संगीत घराना यहां ६०० साल पुराना है। बनारस कि सुबह अस्सी घाट के सांस्कृतिक कार्यक्रम से होती है। कभि गायन कभि वादन कभि नृत्य , बनारस अपने कलाकारों को सुबह-हे - बनारस के माध्यम से मंच देता है। फोटोग्राफर्स का स्वर्ग है बनारस, वो यहां कला , संस्कृति के साथ-साथ गोल्डन ऑवर को कैप्चर करने आते हैं। यहां कई अखाड़े है पर पहलवान की लस्सी बड़ी पसंद कि जाती इसके ठीक बगल में बुढ़िया कि कचोड़ी है। अस्सी पर मुमुक्षु भवन में बाहर से लोग केवल काशी में देह त्यागने आते हैं। बनारस में घाटों की संख्या ८८ हैं । अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में प्रस्तुत की जा चुकी फिल्म 'मसान' भी यहां कि कहानी है। वाराणसी को कई लेखकों ने अपना विषय भी चुना । प्लास्टिक सर्जरी के आविष्कार की भुमि भी काशी रही हैं ,यहां सुश्र्रुत ने कई तरह के इलाज कि पद्धति विकसित कि। अगर काशी आए तो इस पावन भुमी को धन्यवाद करना ना भूलें।
©✍️ तरु राय
स्नातक छात्रा
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
2 टिप्पणियाँ
Nice
जवाब देंहटाएंThankyou
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