हॉस्टल का पहला दिन
उत्तर भारत में जब बच्चों का उपनयन संस्कार होता है तो उसे बोला जाता है जाओ काशी पढ़ के आओ। मेरे साथ भी यही हुआ तब से काशी को जानने की इक्षा होने लगी। संयोग से काशी हिंदू विश्वविद्यालय में नामांकन हो गया। और हॉस्टल के रूप में बिड़ला हॉस्टल मिला जो मैं अपने लिये सौभाग्य मानता हूँ। बड़े बड़े शख़्सियतो ने इस हॉस्टल में अनुभव प्राप्त किये है और कुछ यादें भी छोड़ी है।
बात उस दिन की है जब मैं पहली बार हॉस्टल में प्रवेश किया पहले warden के कक्ष में प्रवेश हुआ ।उस दिन पहली बार मैंने warden नाम के किसी शख़्स को देखा था।अब जब जरूरी कागजात जमा हुआ तो संतुष्टि हुई की चलो अब मैं भी हॉस्टलवासी हो गया। साथ में uncle भी थे तो उन्होंने भी एक दिन रहने की इक्षा जतायी। शाम होने को थी भूख भी लगी थी तो सामान स्टाफ रूम में ही रख के बाहर खाने की तलाश में निकल गये। अब उस समय रास्तों का पता नही तो इधर उधर भटकने के बाद कुछ फास्ट फूड ही मिला वही खा के बापस आ गये। वापस आने के बाद रूम की चाभी स्टाफ के पास थी ही नही और warden भी चले गए थे। मैंने सोचा की शायद रूम पार्टनर के पिताजी ले गए हो।दरअसल मेरे साथ रूम allot करवाने रूम पार्टनर के पिताजी आये थे।कॉल करने पर पता चला उन्होंने भी चाभी नही ली है। अब रात कहाँ बिताया जाये इसका चिंता होने लगा। ऊपर रूम के पास गए तो एक बेड पड़ा था बाहर, शायद पहले वाले सीनियर की मीटिंग उसी पर होती थी। पर सामान कहाँ रखा जाये इसकी चिंता क्योंकि बाहर रखने पर कहीं कोई ले गया तो अलग समस्या होगा। बड़ा साहस करके एक रूम का दरवाजा खटखटाये उस लड़के से अनुरोध किये तो तुरंत मान गया।पर सोना भी था लेकिन डर लग रहा था की अगर उसे बोले की भाई सोने के लिये जगह दे दो तो कहीं सामान भी न थमा दे।खैर वो लड़का मेरे सोच से ज्यादा उदार था।सामान रख के बाहर आये तो उसने तुरंत ही दरवाजा बंद कर लिया। बाहर आने पर याद आया चादर तो बैग में ही छोड़ आये पर अब दुबारा उसके कमरे में जाने की हिम्मत भी नही हुई। अब पास में एक गमछा था वही बिछा के सो गये। पर bhu के हॉस्टल में सिर्फ आदमी ही नही रहते, कुत्ते और साँढ भी रहते है।
खैर महादेव की कृपा से साँढ तो उपर चढ़ नही पाता पर कुत्ते तो प्राचीन काल से ही वफ़ादार रहे है और दूसरे नये मेहमान भी आये थे तो स्वागत करने आना ही था। पर वो आये नींद आने के बाद, हालाँकि नींद भी कच्ची ही थी क्योंकि मच्छर इतने थे की हाथ से भगाते न तो शायद उठा के ही ले जाते। इसी बीच लगा गमछे को कोई खींच रहा है, हॉस्टल इतना बड़ा था की भूत - प्रेत होने की संभावना उस समय दिमाग में आना ही था। डरे सहमे नज़रे उठाई तो कुत्ते को पाया, किसी तरह वहाँ से कुत्ते को खदेर के भगाया गया। पर मच्छरों का टांडव कुछ ज्यादा ही हो रहा था। अब वहाँ से उठ के उपर ही एक चबूतरे पर जाकर सो गए। लगभग 3 बजे नींद आयी, सुबह उठे तो कुछ दूरी पर खड़े होकर कुछ लड़के निहार रहे थे। ये अवस्था उन्हें विचित्र लगा और हमें भी हस्यास्पद् लगा। अब सबसे पहले रूम का ताला तोड़ना था और गृहप्रवेश की तैयारी भी ।पर ताला इतना मजबूत की चार ईटें टूट गयी पर ताला नही टूटा असली link कम्पनी का जो था। एक लड़के के कमरे से आरी ले के प्रयास जारी रहा। बकरे की अम्मा आखिर कब तक खैर मनाती,अंततः 15 मिनट के संघर्ष के बाद ताला टूट ही गया। हम धूम धाम से कमरे में प्रवेश किये क्योंकि बाहर में चारों तरफ लड़के खड़े होकर इस विचित्र पात्र को निहार रहे थे पर हमारे लिये ये standing ovation से कम नहीं था।
शिवेश उपाध्याय
बी.ए द्वितीय वर्ष
कला संकाय
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
2 टिप्पणियाँ
waah shivesh pr room kholne wala aadmi ka naam le lete to ka loot jata😈😂😂
जवाब देंहटाएंभाई sorry नाम नहीं लिख पाये तुम्हारा
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