ये जो चाय से इश्क की बातें करते हैं ,
ये उससे कितनी भी मोहब्बत ज़ाहिर करलें , ये एक तरफ़ा मोहब्बत है ,
चाय इनकी कभी थी ही नहीं ,
ना होगी ,
चाय तो सभी की है ,
तभी तो सभी से इश्क लड़ाती है ,
सभी के होंठों से गुजरी है ,
इसलिए नहीं कि बिगड़ैल है ,
इसलिए कि वो उसके आशिकों को बख़ूबी जानती है , वो सब बिगड़ैल हैं ,
आशिक नहीं अय्यास हैं ,
चाय को अपने हिसाब से होने पर चाहते हैं , थोड़ी कम शक्कर हो , कम पत्ती हो , कम-कम उबली हो ,
नकार देते हैं ,
फ़िरसे सज सवरकर आने को कहते हैं । इश्क होता तो जैसी है , वैसी स्वीकार ना कर लेते ?
जानती है वो , जब जब उसने शरीर की गर्माहट को छोड़ा है लोगों ने उसे छोड़ दिया उसी के हाल पर ,
फिर या तो पानी में बहाई गई या फिर उबाली गई ।
पर ठंडी स्वीकारी ना गई ,
एक मख्खी के डूब जाने पर भी अग्निपरीक्षा से गुजरी है ,
गुजरी है हारी है ,चलो फिर भी चल जाता , पर उसके होने पर भी सौतन सिगरेट का होना ,
उसका भी मन भर आया, भला कैंसे सहती की कोई पहले उसकी सौतन को छुए ,
बात पहले या बाद में छूने के क्रम की नहीं है ,
बात है स्वाभिमान की ,
सिगरेट का अपना स्वाभिमान ना हो ना सही , चाय का तो है ,
उसे तो लगा शायद यहाँ भी रंग भेद की शिकार है , दूध को लोग जैसा हो अपना लेते हैं , सवाल उसपर ही उठाते हैं ,
सवाल जायज था , पर फिर मैंने समझाया , रंग भेद नहीं है , रंग भेद होता तो पगली छाछ से भी तो मोहब्बत होती उन्हें ,
ये सुन थोड़ा सा मुस्कुराई और उबलने लगी ,
जो मिला उसमें ख़ुश है ,
ख़ुश है इस बात से कमसे कम ठुकराई तो ना गई नींबू पानी जैसे अपने ही देश में । इतने में एक हँसी की आवाज़ आई , देखा तो काँच से काला कोक मुस्कुरा रहा था , नीम्बूपानी पर ,
चाय अब ख़ुश है ,
उबल रही है , इठलाते हुए , देखो कितनी मुस्कुरा रही है , आय हाय ।
✍️© - अनुराग
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