बालिका गृह में बालिकाये असुरक्षित :- मनोज कुमार

वर्तमान समय में महिलाओं की स्थिति  बेहद  सोचनीय है। वैसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14,15,19,23 24 आदि अनुच्छेद में विशेष  प्रवधान दिए गए हैं। और साथ ही साथ विभिन्न कानूनों के माध्यम से जैसे बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम 2005, महिलाओं का कार्य स्थल लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम 2013 समेत समय-समय पर  विभिन्न प्रयास किए गए हैं ताकि उनकी स्थिति में सुधार लाया जा सके।महिलाओं की दशा सुधारने हेतु भारत सरकार द्वारा सन् 1985 में महिला एवं बाल विकास विभाग की स्थापना तथा 1992 में राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की गई तथा देश में अतंर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाने लगा । भारत सरकार द्वारा वर्ष 2001 को महिला सशक्तीकरण वर्ष भी घोषित किया गया । 

 निजी और सार्वजनिक जगह के अलावा अब बाल सुरक्षा गृह भी सुरक्षित नहीं है । पिछले वर्ष बिहार के मुजफ्फरपुर और उत्तर प्रदेश के देवरिया  देवरिया के  बालिका  सुरक्षा गृह में  बलात्कार और यौन उत्पीड़न के कई मामले सामने आए थे। तो अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के कानपुर के एक बालिका सुरक्षा ग्रह में 57 लड़कियों को  केरोना एवं 7 नाबालिक लड़कियों के गर्भवती होने  की पुष्टि हुई है। 

गौरतलब है हमारी सरकार द्वारा "बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ"  आवाज बुलंद की जाती है वहीं दूसरी तरफ जब बेटियां सुरक्षित की नहीं है तो  पढ़ेंगी कहां से?   दूसरी बात समाज की आती है।हम अपने घर की बहू  बेटियों की  इज्जत बचाते हैं वही दूसरे घर  की इज्जत उछालते नजर आते हैं। हमें इस रूढ़िवादी एवं कुत्सित विचारधारा से आगे निकलना होगा। 

 दरअसल इन बालिका गृहों के निगरानी और मॉनिटरिंग को लेकर कोई पुख्ता सिस्टम नहीं है।  इनकी निगरानी और मानिटरिंग सामान्यतः जिला प्रोबेशन एवं बाल कल्याण अधिकारी करते हैं इन गृहों में ऑडिटिंग के नाम पर सामान्यतः इंफ्रास्ट्रक्चर की ऑडिटिंग की जाती है सोशल  ऑडिटिंग नहीं की जाती है अतः सोशल ऑडिट इन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
पिछले कई वर्षों में हुई ऐसी घटनाओं के आरोपियों कि राजनीतिक रसूख की बात सामने आ रही है।  राजनीतिक संरक्षण के बल पर ही ऐसे घिनौने कृत्य को अंजाम दे पाते हैं। 

 राष्ट्रीय महिला आयोग एवं राज्य महिला आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति स्वतंत्र रूप से न्यायपालिका द्वारा की जानी चाहिए क्योंकि विगत वर्षों में दिल्ली महिला आयोग को छोड़कर अन्य महिला आयोग का कार्य सुस्त एवं स्थिर नजर आया है। 

                 ✍️© मनोज कुमार
    (लेखक बीएचयू के विधि संकाय के अंतर्गत एलएलबी के वर्तमान छात्र हैं। )
 

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