मधुबन पार्क में इजराइली महिला और BHU का वो छात्र।जानिए क्या हुआ था उस शाम..


मधुबन पार्क में इजराइली महिला और BHU का वो छात्र।
जानिए क्या हुआ था उस शाम..

अपना विश्वविद्यालय ऐसे तो वाकई में बहुत ही साफ सुथरा और सुंदर है। इसमें किसी को कोई शक नही। 
बनारस घूमने आने वाले लोग बीएचयू जरूर घूमने आते है चाहे वो किसी अन्य प्रदेश, देश या विदेश के हो।
बीएचयू की साफ सुथरी और दोनो ओर पेड़ो की डालियों को ओढ़े चौड़ी सड़के , जुड़वा भाई/बहन के जैसे हूबहू एक ही शक्ल ओ सूरत के चौराहे , और बड़ी बड़ी भव्य दिव्य इमारते किसी का भी मन मोह लेती है।

लेकिन विश्वविद्यालय में कुछ ऐसी सार्वजनिक जगहें है जहां साफ सफाई और मेंटनेंस की बेहद जरूरत है।


बीएचयू का मधुबन पार्क भी उसी कुछ चुनिंदा सार्वजनिक जगहों में से एक है । यूं तो यह जगह बेहद ही खूबसूरत है और ऐतिहासिक है। और मधुबन के बनने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है हालाकि वो कभी बाद में अभी नही।
Covid आया तो इसका असर मधुबन पर भी पड़ा। कभी गुलजार रहने वाला मधुबन आज अपने बदहाल अवस्था पर आंसू बहा रहा है । 
ना तो अब यहां झाड़ू लगता है और ना यहां पीने का साफ पानी उपलब्ध है।
...और टॉयलेट! अरे भैया किसका नाम ले लिए आप, तौबा तौबा...।
बिना लाग लपेट के कहे तो टॉयलेट निहायत ही गंदे और बदहाल स्थिति में पड़े है। चाहे वो पुरुष टॉयलेट हो या महिला टॉयलेट।
अपने कैंपस में फॉरेनर (विदेशी) लोग भी घूमने आते है । ऐसे ही एक दिन एक इजराइली जोड़ा बीएचयू की सड़को पर टहलते टहलते उनके कदम मधुबन पार्क की ओर मुड़ गए। और जब कदम मधुबन की ओर मुड़े तो मधुबन के पेड़ो के छाव में , चिड़ियों के चहचहाने में और कदमों तले नर्म नर्म घासो पर खोते चले गए। इजराइली जोड़ा बाहों में बांहे डाले में घूम रहा था और अपनी ही भाषा में अतीत में खोए थे।
अचानक से इजराइली महिला को कुछ महसूस हुआ और वो इधर उधर अपनी नज़रों से टटोलने लगी।
शायद उस इजराइली महिला को टॉयलेट की जरूरत महसूस हुई थी। उसने पार्क में मौजूद विश्वविद्यालय के एक छात्र से टॉयलेट के बारे में पूछा तो उसने बेहद ही सकुचाते हुए शर्म के साथ एक ओर इशारा कर दिया।

इजराइली महिला उस ओर बढ़ चली ...और टॉयलेट के दरवाजे तक पहुंचते ही उसने अचानक से चौकते हुए अपने कदम वापस खींची और अपने ही मूल भाषा में कुछ बड़बड़ाते हुए अपने इजराइली साथी के पास पहुंच कर टॉयलेट की ओर इशारा करते हुए हाल ए बयां करने लगी।

दूर खड़ा बीएचयू का वो छात्र जिससे उस इजराइली महिला ने टॉयलेट का पता पूछा था उसने मारे शर्म के अपना चेहरा दूसरी दिशा में कर लिया।
इजराइली महिला चारो ओर देखने लगी और नजरे फिर उसी विश्वविद्यालय के छात्र से जा मिली। लड़का वापस इजराइली जोड़े के पास आया और अंग्रेजी में उनसे कुछ बाते की और उस जोड़े को मधुबन के बगल में ही मौजूद परफॉर्मिंग आर्ट फैकल्टी ले गया । और तब जाकर वो निवृत हुई।
कुछ देर बाद जब वो परफॉर्मिंग आर्ट फैकल्टी से बाहर निकले तब लड़के के चेहरे पर एक संतुष्टि का भाव झलक रहा था और उस सुंदर इजराइली जोड़े के चेहरे पर कृतघ्नता के भाव थे।

उस दिन तो विश्वविद्यालय के उस छात्र ने उन परदेशी लोगो के सामने कैंपस की इज्जत बचा ली लेकिन क्या होता अगर उनको वो समझदार और देश सेवा के प्रति जागरूक लड़का नहीं मिला होता?
वो विदेशी जोड़े कैसा अनुभव लेकर जाते अपने बीएचयू से ? अपने देश से?
उस इजराइली जोड़े के जैसे ही कइयों देशों से लोग आते है अपने बीएचयू को निहारने । क्या छवि बनेगी अपने बीएचयू की और अपने देश की उनके मन में?

क्या यह शर्म की बात नहीं की करोड़ों का फंड पाने वाला बीएचयू अपने परिसर के एक सार्वजनिक स्थल के टॉयलेट को दुरुस्त नही करा पा रहा?

तो प्रशासन से मेरी यही मांग है की वो कम से कम विश्वविद्यालय के मूल भूत चीजों को दुरुस्त रखे ताकि उस इजराइली जोड़े की मदद करने वाले छात्र को शर्मसार न होना पड़े।

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