कोरोना इस बार भी निगल गया BHU का बसंत। नही निकली इस बार भी झांकिया।

Bhu vasant panchmi jhaki
स्मृतियों से BHU वसंत पंचमी की झाँकी


कहाँ जाता है कि BHU का बसंत पंचमी नही देखा तो कुछ भी नही देखा।

एडमिशन प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद जब छात्र-छात्राएं ठीक से BHU को जान-पहचान भी नही पाए होते है पता नही कब लाइबेरी कार्ड ,हेल्थ कार्ड बनवाते-बनवाते पहला सेमेस्टर का जंग सिर पर आ जाता है पता ही नही चलता,,नवांगतुक जैसे-तैसे लड़ते-भिड़ते , गिरते-उठते अपनी ऊर्जा , कल्पना, और सीनियर भैया/दीदी लोग के ज्ञान से अंततः पार पा ही लेते है।

BHU में जब बसंत आता है तो आम के वृक्षो में मोजर और गुलमोहर के लाल फूलो से पूरा BHU पट जाता है। भौरों की भिनभिनाहट रोम रोम को गुंजयमान कर देती है।
कैंपस में चलने वाली बसंती पछुआ जब नव तरुण और तरुणी के खिले हुए बदन को छूती है तो उससे मन के एक कोने में दूर अपने गाँव/शहर के पुराने कॉलेज के कक्षा में तिरछी नज़रो से देखने वाले किसी कि याद बरबस घुलने लगती है। तब नवतरूण/तरुणी मधुबन , VT , लाइब्रेरी , एग्रीकल्चर फार्म , और MMV , त्रिवेणी का चक्कर लगाने लगते है। और जब कही भी ठौर नही मिलता तो आखिरी उम्मीद बचती है BHU के बसंत पंचमी के दिन निकलने वाली झांकी।

क्लास में दिखे किसी चेहरे को (जिसके लिये मन मे बहुत कुछ उपज रहा होता है लेकिन तरुण/तरुणी बोल कुछ नही पा रहे होंते है एक दूसरे से) नज़रे उस दिन भी शिद्दत से ढूंढ रही होती है। बहुत ढूंढने के बाद भी अगर नज़रे एक दूसरे से टकराने के बाद आसमान गुलाबी होने लगता है। हालांकि..पीली साड़ी और सफेद कुर्ते में एक दूसरे को देखकर बोल उस दिन भी नही पाते लेकिन नज़रो-नज़रो में ही कुछ अनकहा सा कह देते है और फिर शुरू होता है साथ मे लाइब्रेरी और मधुबन का चक्कर।

BHU हमेशा से बसंत पंचमी के दिन स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है और स्थापना दिवस के शुभअवसर पर सभी संकायों द्वारा झांकी निकाली जाती है। जिसकी तैयारी 10-15 दिन पहले से ही शुरू हो जाती है। इसबार BHU का 106वा स्थापना दिवस था। 
कोरोना पिछले कुछ सालों से BhU का ये बसंत खा जा रहा है। कोरोना के कारण कैंपस खुल नही पा रहा है। 
कक्षाएं ऑनलाइन चल रही है। बसंत अब भी आती है लेकिन BHU के बन्द पड़े कैंपस में आने से मना कर देती है । आमों में ना मोजर आ रहे है और ना ही गुलमोहर के फूलों में वो रंगत आ रही है। कैंपस बिन नव तरुण/तरुणी के उदास है। क्लासेज उदास है। Vt , मधुबन , मैत्री , लाइब्रेरी , एग्रीकल्चर ,mmv उदास है। सदैव चलायमान रहने वाली bhu की सड़कें उदास है। जुड़वा भाइयों जैसे दिखने वाले Bhu के चौराहे उदास है। कैंपस में लगने वाली चाय की अड़िया उदास है।

उदास बसंत के इस दौर में जो एक चीज सबको सबकुछ ठीक हो जाने का दिलासा दिलाये है वो है 'उम्मीद' जो अभी तक सबको इस मनहूस बीमारी से बचाये रखा है।


तो उम्मीद करते है कि BHU में अगला बसंत आये तो अपनी धमक के साथ आये ताकि अगला स्थापना दिवस झांकियो वाला हो ,मोजर वाला हो ,गुलमोहर के लाल फूलो वाला हो , नवप्रवेशी तरुण तरुणियों वाला हो....

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