थोड़ी सी नाराजगी पर रिश्ते खत्म करने वाले देखें, महामना पंडित मदनमोहन मालवीय और बाबू शिव प्रसाद गुप्त जी के रिश्ते


काशी हिंदू विश्वविद्यालय की जब स्थापना हुई और महामना ने शिक्षा का माध्यम  अंग्रेजी हो इस विषय पर अपनी सहमति दे दी तब विश्वविद्यालय के  स्थापना में सहयोगी रहे बाबू शिवप्रसाद गुप्त जी इस बात से बहुत नाराज हुए । इसी मतभेद के कारण काशी विद्यापीठ (महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ) की योजना बनी । इस मतभेद का नतीजा यह हुआ कि शिवप्रसाद गुप्त जी BHU के कार्यकारणी सदस्य पद से इस्तीफा दे दिए और अपने स्वाभिमान के धनी महामना ने भी कभी काशी विद्यापीठ का भ्रमण तक नहीं किया । लेकिन सबको जानकर ताज्जुब होगी कि इतने बड़े मतभेद के वावजूद दोनों के मन में एक दूसरे के प्रति कोई ईर्ष्या, द्वेष या घृणा नहीं हुई बल्कि जबतक मालवीय जी बनारस में रहे तबतक उनका भोजन (महामना केवल एक समय ही भोजन करते थे) प्रतिदिन बाबू शिवप्रसाद गुप्त जी के यहाँ से ही आती थी । दोनों का मतभेद कभी उनके व्यक्तिगत सम्बन्धों के बीच बाधक न हुआ ।

नोट :- हम BHU के छात्र खुद को महामना के मानस पुत्र कहते हैं और उनके ही आदर्शों के विपरीत जरा सी मतभेद पर अपने व्यक्तिगत रिश्तों को तार पर रखकर एक दूसरे से घृणा करने लगते है । हमें महामना से सीखने की जरूरत है । 

आशा करता हूँ कि यह संदेश आपको अच्छी लगी होगी और सभी मित्र, अग्रज और अनुज मेरे इस अनुरोध को स्वीकार करेंगे कि मतभेद हो मनभेद नहीं ।

 ध्यान देंगे अगर कोई गलती हुई हो तो !

लेखक :- उज्ज्वल सिंह उमंग

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