पहले के लोग पानी को समान्य रूप से पीना जानते थे , वे पानी को एक सामान्य पात्र जैसे घड़े इत्यादि में रखते थे । धीरे - धीरे समय के साथ टेक्नोलॉजी जीवन का अहम हिस्सा बनती गयी अब पानी को लोग सामान्य पात्र के अलावा रेफ्रिजरेटर , थर्मस इत्यादि में रखकर पीने लगे , लोग अब पानी एक रूप को न पीकर उसे कई रूप से पीने लगे हैं अब पानी को बर्फ़ के रूप में तो खाया भी जा सकता है आखिर टेक्नोलॉजी का कमाल ही है वर्ना पहले के समय में किसने सोचा था की पानी भी खाया जा सकेगा ! तो आखिरी में आप ये बताएं कि इतना कुछ होने के बाद मतलब पानी को ठंडा करने , विभिन्न स्वरूपों में परिवर्तित करने व कई प्रकार से प्रयोग करने के बाद भी पानी आखिर पानी ही है न , पानी को हम तेल या कुछ और तो नहीं बता सकते न ठीक वैसे ही मीडिया एक पानी है और टेक्नोलॉजी पानी को विभिन्न स्वरूप प्रदान कर एडवांस बनानें वाली तकनीक ..
कितनी सीधी बात है लेकिन हम इसे समझ नहीं पा रहे हैं कि सोने का घड़ा हो या मिट्टी का महत्व पानी का है , सामान्य पानी हो या फ्रिज का महत्व पानी का है , बर्फ़ हो या गर्म भाप महत्व पानी का है , वर्तमान में हम टेक्नोलॉजी पर इतना ज़्यादा आश्रित हो गए है कि हम मीडिया के महत्व को और उसकी वास्तविकता को भूलते जा रहे हैं।
मीडिया का उद्देश्य और टेक्नोलॉजी का उद्देश्य भिन्न - भिन्न है एक सूचना और सत्यता पर आधारित है तो दूसरे को इन सबसे कोई मतलब नहीं , एक नैतिकता और कल्याण के उद्देश्य से युक्त है तो दूसरे को नैतिकता जैसे मानवीय मूल्यों का कोई ज्ञान नहीं..
लेकिन विडम्बना देखिये हम मीडिया रूपी आधार को भूलकर अब सिर्फ आधुनिक टेक्नोलॉजी को प्राथमिकता देने लगे हैं । अब अगर आपके पास एक अच्छा स्मार्ट फ़ोन है तो आप स्वयं पत्रकार हैं आप बड़े आराम से किसी भी सूचना व उसके समाज में प्रभाव को बिना जाने , परखे किसी भी स्थिति में उसे दूसरे लोगों तक पहुंचा सकते हैं , आप सोशल मीडिया में बिना तथ्यों की सत्यता के कुछ भी लिख सकते हैं , अगर आपके पास टेक्नोलॉजी ( स्मार्टफोन ) है तो आप एक पत्रकार है आप एक चलता - फिरता मीडिया हाउस हैं , आपको किसी भी प्रकार के मौलिक और बेसिक मीडिया और पत्रकारिता के ज्ञान की आवश्यकता नहीं आपको जमीनी हकीकत से कोई मतलब नहीं बस आप अपने स्मार्टफोन को लीजिये और बन जाइये एक स्वत्रंत पत्रकार मुझे तो समझ में नहीं आता है कि लोग व्यर्थ ही बड़े - बड़े मीडिया संस्थाओं में पैसा लगाकर मीडिया की पढ़ाई कर रहे हैं , आखिर उनसे बेहतर तो बिना पढ़े-लिखे टेक पत्रकार लोग हैं ..
पत्रकारिता अपने मूल स्वभाव को भूलकर अब टेक्नोलॉजी मात्र पर आधारित होती जा रही है , टेक्नोलॉजी सीखाता है आपको बेहतर बनाना , बेहतर दिखना , बेहतर प्रदर्शन हर चीज़ बेहतर करना जो बहुत अच्छी बात है लेकिन बेहतर होना आप पर निर्भर करता है आप बेहतर खुद होते हैं क्योकि ये आधुनिक उपकरण आपको सिर्फ बेहतर दिखा सकते हैं बेहतर बना नहीं सकते । मीडिया और टेक्नोलॉजी एक दूसरे के पूरक भी हैं जिनमें फ़र्क करना वर्तमान समय में बड़ा ही कठिन है क्योंकि दोनों अब संचार का माध्यम है फिर भी जब बात मीडिया की आती है तो लोग भरोसा , वास्तविकता इन सब से इत्तफाक रखते हैं वहीं टेक्नोलॉजी का उदहारण तो आप फेक न्यूज़ में इसका योगदान से ही समझ सकते हैं अब यहां यह भी साफ है कि मीडिया अपनी पहचान टेक्नोलॉजी के बढ़ते प्रभाव से खोता जा रहा है क्योंकि अब मीडिया का कोई माई - बाप नहीं है जैसे और क्षेत्रों का होता है जैसे मेडिकल या अन्य यहाँ तो बस जो कैमरे में आया वही जानकार और वास्तविक पत्रकार है भले ही उसका पत्रकारिता के धर्म से कोई मतलब न हो मीडिया उसको भरपूर शरण देता है और खुद को गर्त में डालते हुए अपनी पहचान खोता जा रहा है इसलिये कह सकते हैं कि मीडिया और टेक्नोलॉजी एक ही फल फैमिली से तो हैं लेकिन दोनों एक ही पेड़ के फल नहीं है ।।
✍️© प्रतीक मिश्रा
लेखक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र हैं और वर्तमान में माखनलाल राष्ट्रीय पत्रकारिता संस्थान में पत्रकारिता के छात्र हैं । उसके साथ साथ सामाजिक कार्यों में रुचि रखते हुए स्वतंत्र पत्रकारिता कर रहें हैं।
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