मेरे भाव प्रवाह की काशी :- सृष्टि भट्टाचार्य

मेरे भाव प्रवाह की काशी 

काशी,, यदि शब्द के रूप में देखे तो केवल दो शब्दों का संगम है , किन्तु भावना के रूप में देखे तो गंगा रूपी विस्तार ,,,जो मोक्ष के सागर में जा ही अपना मूल रूप को जीवंत बनाता है ।

शिव पुराण की कथाओं से जोड़े तो इसको स्वयं देवादि देव महादेव ने अपने त्रिशूल पर धारण कर सृष्टि की रक्षा प्रलय से की थी , तभी उन्होंने माता पार्वती संग बारहवीं ज्योतिर्लिंग " काशी विश्वेश्वर" की स्थापना यहां की थी ,, ये वही शहर है जिसके कोतवाल स्वयं कालभैरव है ,, और उनके साथ यहाँ और सात भैरव ,, अनूठी बात है इसकी जहाँ माता सती स्वयं विशालाक्षी देवी के रूप में बाबा विश्वनाथ के साथ ही विराजती है ,, यानी ये एक ऐसा शहर जहा ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ दोनों का समागम स्थित है ।

आधुनिक रूप में देखे तो कुछ खास नही ,, जीवन में  ठहराव महसूस होगा , किन्तु दार्शनिक दृष्टिकोण इसमे बसी हुई शांति रूपी प्रवाह को मन तरंग में उभार लाती है । काशी की गलियां हमे एक सिख तो सदैव देती है कि जल ही जीवन का स्रोत है ,, उसी प्रकार हर गली का गंतव्य उत्तर वाहिनी गंगा घाट है ।

समय के प्रवाह को मद्देनजर रखते हुए हम सभी कही न कही जीवन में एकान्त की अभिलाषा रखते है पर उसी नज़रिये से बनारस में आपको वो एकांत शायद ही प्राप्त हो , क्योंकि यहाँ हर किसी को दूसरों के जीवन तथा उनकी घटनाओं में काफी रुचि है , मदद के लिए आपको बस अपनी ओढ़ से एक पुकार भर की आवश्यकता होगी ।

जब भी मन , जीवन में विचारों का द्वंद छिड़ा दिखाई दे ,, घाट की मनोरम छटा सारे द्वंद का उत्तर प्रतीत होती है , बस आवश्यकता है तो कुछ समय स्वयं के भीतर झांकने के लिए,,,ये शहर ही मोक्ष की पूंजी है ,, केवल जीवन से मुक्ति नही अपितु सारे जटिलताओं से भी ।

अपने शब्दों को विराम देते हुए बस इतना  कहूंगी कि ,मेरे लिए मेरी काशी बैराग्य का नाम है ,, क्योंकि मेरा यह मानना है अगर आप सभी आसक्ति से मुक्त हो पाए तभी आप मुक्ति के असल अभिप्राय को जान पाएंगे , और संसार के विषमताओं का भी सरल उपाय करने में समर्थ हो पाएंगे ।


                      ✍️© सृष्टि भट्टाचार्य
                                  पूर्व छात्रा
                       महिला महाविद्यालय BHU

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