भगवान जगन्नाथ की यात्रा को सुप्रीम कोर्ट ने दी मंजूरी: एक सराहनीय फैसला

देश की शीर्ष अदालत ने 18 जून को अपने दिए गए फैसले में जगन्नाथ यात्रा  पर रोक लगा दी थी और कहा था कि यदि हम जगन्नाथ यात्रा की इजाजत देते हैं तो भगवान जगन्नाथ हमें कभी माफ नहीं करेंगे। इसके बाद केंद्र सरकार, उड़ीसा की राज्य सरकार व भाजपा नेता संबित पात्रा समेत कई पुनर्विचार याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के विरुद्ध दायर की गई जिसकी सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 22 जून को भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा को कुछ निरबंधन(restriction) के साथ  मंजूरी प्रदान कर दी। 

ऐतिहासिक पक्ष-

हिंदू धर्म में भगवान जगन्नाथ धाम को चारों धामों में से एक माना जाता है इस तरह भगवान जगन्नाथ की यात्रा का हिंदू धर्म में काफी महत्व है। 10 दिनों तक चलने वाले जगन्नाथ उत्सव का जिक्र शास्त्रों और पुराणों में भी मिलता है। वर्तमान मंदिर 800 वर्ष से अधिक प्राचीन है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण, जगन्नाथ रूप में विराजित हैं। साथ ही यहां उनके बड़े भाई बलराम (बलभद्र या बलदेव) और उनकी बहन देवी सुभद्रा की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान जगन्नाथ स्वयं अपने मंदिर से निकलकर भक्तों के बीच आते हैं वह उनके सुख-दुख में भागीदार होते हैं।  मान्यताओं के अनुसार जो भी इस रथ यात्रा में सम्मिलित होता है वह गुंडिचा मंडप तक पहुंचता है उसकी मनोकामना पूर्ण होकर मोक्ष की  प्राप्ति होती है।यात्रा के तीनों रथ लकड़ी के बने होते हैं जिन्हें श्रद्धालु खींचकर चलते हैं। भगवान जगन्नाथ के रथ में 16 पहिए लगे होते हैं एवं भाई बलराम के रथ में 14 व बहन सुभद्रा के रथ में 12 पहिए लगे होते हैं। भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष रथ 45.6 फीट ऊंचा, बलरामजी का तालध्वज रथ 45 फीट ऊंचा और देवी सुभद्रा का दर्पदलन रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है।सभी रथ नीम की पवित्र और परिपक्व काष्ठ (लकड़ियों) से बनाए जाते हैं, जिसे ‘दारु’ कहते हैं। इसके लिए नीम के स्वस्थ और शुभ पेड़ की पहचान की जाती है, जिसके लिए जगन्नाथ मंदिर एक खास समिति का गठन करती है।बलरामजी के रथ को 'तालध्वज' कहते हैं, जिसका रंग लाल और हरा होता है। देवी सुभद्रा के रथ को 'दर्पदलन' या ‘पद्म रथ’ कहा जाता है, जो काले या नीले और लाल रंग का होता है, जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को ' नंदीघोष' या 'गरुड़ध्वज' कहते हैं। इसका रंग लाल और पीला होता है।
इस तरह जगन्नाथ यात्रा हिंदू धर्म की मान्यताओं  और विश्वास की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। 

संवैधानिक पक्ष 

भारत एक पंथ निरपेक्ष राज्य है राज्य है जिसका तात्पर्य है कि राज्य किसी विशेष धर्म का पोषण नहीं करता है बल्कि भारत में प्रत्येक नागरिक को अपने विश्वास के अनुसार किसी भी धर्म को मानने तथा किसी भी ढंग से ईश्वर की पूजा करने की पूर्ण स्वतंत्रता है। धर्म स्वतंत्र केवल धार्मिक श्रद्धा तथा सिद्धांतों पर तक सीमित नहीं है वरन उसके प्रचार एवं प्रसार का भी अधिकार इसमें सम्मिलित है। 

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25  अंत:करण की, और धर्म को   अबाध रूप से  मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। उच्चतम न्यायालय ने धर्म की परिभाषा देते हुए कहा है "धार्मिक स्वतंत्रता सिद्धांत विश्वासों तक ही सीमित नहीं है इसके अंतर्गत धर्म के अनुसरण में किए गए कार्य भी हैं तथा इसमें कर्मकांड, धार्मिक कार्य, संस्कृति तथा उपासना की पद्धतियों की गारंटी है। 

हालांकि संविधान का अनुच्छेद 25(1) लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य जैसे उपबंधो के अधीन रहते हुए धार्मिक स्वतंत्रता की बात करता है। लेकिन फिर भी कोविड-19 जैसी महामारी के दौरान स्वास्थ्य उपबंधो को ध्यान में रखते हुए जगन्नाथ मंदिर समिति ने जांच की रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद 800 लोगों को पिछले कई दिनों से क्वॉरेंटाइन किया था ताकि वे जगन्नाथ यात्रा में सम्मिलित हो सके। 
स्वास्थ्य बंधुओं को को ध्यान में रखते हुए कुछ शर्तों के साथ भगवान जगन्नाथ की यात्रा की अनुमति प्रदान करना बेहद सराहनीय फैसला है।

                 ✍️© आशुतोष मिश्रा

लेखक वर्तमान में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के विधि संकाय में लॉ के छात्र के रूप में अध्ययनरत हैं। कानून के को आम भाषा में लोगो के बीच ला कर लोगो को कानून के प्रति जागरूक कर रहें हैं। उसके साथ सामाजिक कार्य से जुड़े रहते हुए स्वतंत्र लेखन कर रहें हैं ।

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