काशी हिंदू विश्वविद्यालय के SSL BHU हॉस्पिटल और ट्रॉमा सेंटर विवाद: टेंडर घोटाले और माफिया गठजोड़ का परत-दर-परत खुलासा

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काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के ट्रॉमा सेंटर में उठा हालिया विवाद महज एक झगड़े से शुरू हुआ, लेकिन अब यह मामला विश्वविद्यालय में चल रही गहरी साज़िश, भ्रष्टाचार, और टेंडर घोटाले की कहानी बन चुका है। सतह पर यह प्रशासन बनाम आंदोलन का टकराव लगता है, लेकिन हकीकत इससे कहीं गहरी और संगठित है।

ट्रॉमा सेंटर की अपेक्षाकृत साफ-सुथरी व्यवस्था बनी निशाना?
BHU ट्रॉमा सेंटर पूर्वांचल और बिहार के हज़ारों मरीजों के लिए उम्मीद की किरण है। यहाँ सरकारी दरों पर इलाज, जांच और दवा की व्यवस्था है, और बाहर की दवा लिखने की प्रवृत्ति काफी सीमित है। पारदर्शी और ईमानदार व्यवस्था ने इसे खास बनाया है, लेकिन यही बात उन गुटों को खटक रही है जो इस व्यवस्था से आर्थिक लाभ नहीं ले पा रहे।

24 मई का मामूली झगड़ा बना बड़ा विवाद

24 मई 2025 को एम्स कमेटी का निरीक्षण था। इसी दिन ट्रॉमा सेंटर में डॉ. शशि प्रकाश मिश्रा और कैंटीन संचालक के बीच विवाद हुआ, जिसमें अस्पताल के दो बाउंसर गार्ड का भी नाम सामने आया। कैंटीन संचालक ने हाइ कोर्ट के आदेश से FIR कराई तो वहीं डॉ शशि प्रकाश ने लंका थाने में तहरीर देकर तो मुख्यतः दोनों पक्षों ने FIR दर्ज कराई।

26 मई 2025 से इस मामूली झगड़े को बहाना बनाकर कुछ पूर्व छात्र नेता और स्थानीय तत्वों ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए बखेड़ा शुरू किया।


MRI टेंडर की परतें: असली खेल

कुछ दिनों पहले BHU के मल्टी सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक में MRI मशीन लगाने के लिए टेंडर निकला। यह ठेका करोड़ों का था, और इसे एक ऐसी कंपनी को दिया गया, जिसके मालिक एक स्थानीय विधायक से जुड़े हैं। जांच में सामने आया कि इस कंपनी द्वारा दिए गए GST नंबर में गड़बड़ी है—यह नंबर फर्जी पाया गया।

BHU प्रशासन से शिकायत हुई और फिर कोर्ट के आदेश से मुकदमा दर्ज हुआ। इससे टेंडर पाने वाली कंपनी और उससे जुड़े रसूखदार लोग बेचैन हो गए।

जिस व्यक्ति ने सुंदरलाल अस्पताल के MRI टेंडर का फर्जीवाड़ा उजागर किया, उसका ट्रॉमा सेंटर में CT Scan और MRI का टेंडर है। अब टेंडर गड़बड़ी उजागर करने वाले पर जवाबी कार्रवाई की योजना बनी। ट्रॉमा प्रभारी पर दबाव डाला गया कि इस व्यक्ति का टेंडर रद्द कर दें। लेकिन चूंकि उसके टेंडर में कोई तकनीकी खामी नहीं थी, प्रभारी ने टेंडर रद्द करने इनकार कर दिया। बस, यहीं से वो टारगेट बन गए। मेडिकल माफिया, और स्थानीय विधायक के गठजोड़ ने हटाने की रणनीति बनाई। बाउंसर विवाद को मुद्दा बनाया गया, और ट्रॉमा सेंटर के प्रभारी को बदनाम करने की मुहिम शुरू हुई।

यह मामला अब कोई व्यक्तिगत या विभागीय विवाद नहीं रह गया है। यह सवाल है कौन पारदर्शी और जिम्मेदार मेडिकल व्यवस्था के साथ खड़ा है? और कौन भ्रष्टाचारियों और माफिया गठजोड़ के साथ?

फिलहाल BHU प्रशासन की ओर से कोई स्पष्ट बयान नहीं आया है, लेकिन इस मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए छात्र, शिक्षक, और नागरिक समाज को सच जानने की कोशिश करनी चाहिए।

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